मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

बाहर निकाल लो मेरी त्वचा से अपनी सुवास

निज़ार क़ब्बानी की कुछ कवितायें आप पहले भी पढ़ चुके हैं।यह कवि बार - बार अपनी ओर खींचता है । हर बार लगता है कि यह तो हमारी ही , हमारे ही मन की बात अपनी कविता में कर रहा है।इसमें ऐसा नया क्या है? शताब्दियों से मनुष्य के भीतर जो भी रागात्मक नाद बज रहा है बस उसी के अनुनाद को ही तो इसने वाणी दी है।आइए, आज उनकी इस छोटी - सी इस कविता के बहाने अपने भीतर के संसार में तनिक झाँके , पसंदीदा लिरिकल मोमेंट्स को पकड़े और थोड़ा- सा रूमानी हो जायें ! और क्या ! !


अवसर
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

खींच लो यह खंजर
जो धँसा है मेरे हृदय के पार्श्व में
मुझे जीने दो
बाहर निकाल लो मेरी त्वचा से अपनी सुवास।
मुझे एक अवसर दो :
कि मैं मिल सकूँ एक नई स्त्री से
कि मैं अपनी डायरी से मिटा दूँ तुम्हारा नाम
कि मैं काट दूँ तुम्हारे केशों की वेणियों को
जो बनी हुई हैं मेरी ग्रीवा की फाँस।

मुझे एक अवसर दो
कि नई राहों का अन्वेषण कर सकूँ
ऐसी राहें जिन पर कभी चला नहीं तुम्हारे साथ
ऐसे ठिकाने तलाशूँ
जहाँ कभी बैठा नहीं तुम्हारे संग
उन स्थलों का उत्खनन करूँ
जिन्होंने विस्मृत कर दिया है तुम्हारी स्मृति को।

मुझे एक अवसर दो
कि उस स्त्री को खोज सकूँ
जिसे मैंने बिसार दिया तुम्हारे लिए
और तुम्हारे लिए हत्या कर दी उसकी।

मैं फिर से जीना चाहता हूँ
एक अवसर दो मुझे
बस एक।

9 टिप्‍पणियां:

Vineeta Yashsavi ने कहा…

मुझे एक अवसर दो
कि नई राहों का अन्वेषण कर सकूँ
ऐसी राहें जिन पर कभी चला नहीं तुम्हारे साथ
ऐसे ठिकाने तलाशूँ
जहाँ कभी बैठा नहीं तुम्हारे संग
उन स्थलों का उत्खनन करूँ
जिन्होंने विस्मृत कर दिया है तुम्हारी स्मृति को।

bahut achhi kavita...

अनिल कान्त ने कहा…

आप जो हमेशा बेहतरीन बेहतरीन रचनायें पढ़वाते हैं उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रचना प्रेषित की है।बधाई।

महेन ने कहा…

रूमानी और लिरिकल मोमेंट्स? ये अवसर तो हर शादी-शुदा तलाशता है। मज़ाक जैसा सच। ये अनुवाद है क्या? आपका?
अच्छी कविता… सचमुच।

siddheshwar singh ने कहा…

महेन जी,
* मुझे ऐसा लगता है कि जीवन के खटराग के बीच आने वाले / तलाशे गए लिरिकल मोमेंट्स ही हमारे भीतर नमी बनाते और बचाते हैं।

* हाँ यह अनुवाद है। अरबी से बरास्ता अंगेजी। और इस खाकसार ने ही यह कोशिश की है।आप को अच्छी लगी , सो श्रम सार्थक हुआ।

* शुक्रिया , दिल से ! !

Urmi ने कहा…

मेरी गलती को बताने के लिए शुक्रिया! दरअसल आपने ठीक कहा, राक नहीं राख होना चाहिए था! आप दुबारा देखिये मेरी शायरी को क्यूंकि मैंने कुछ तबदीली की है!
मुझे एक अवसर दो
कि नई राहों का अन्वेषण कर सकूँ
ऐसी राहें जिन पर कभी चला नहीं तुम्हारे साथ
ऐसे ठिकाने तलाशूँ..
बहुत सुंदर रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मुझे एक अवसर दो
कि उस स्त्री को खोज सकूँ
जिसे मैंने बिसार दिया तुम्हारे लिए
और तुम्हारे लिए हत्या कर दी उसकी।

मैं फिर से जीना चाहता हूँ
एक अवसर दो मुझे
बस एक।

शायरी का अनुवाद शायरी में...
कमाल है जनाब!
आपके श्रम को आदाब!!

सागर ने कहा…

ओह ! निजार कब्बानी... आपको कैसे जानता इस कुशल अनुवादक के बिना ?

varsha ने कहा…

bahut achchi kavita. shukriya.