बुधवार, 6 जुलाई 2016

चटख ललछौंहे रंग के कुरते के बावजूद

 आज बहुत  दिनों बाद ब्लॉग पर कुछ लिखत - पढ़त। एक कविता के रूप में। लीजिए यह साझा है :


कवि का कुरता

यह कविता पाठ के मध्यान्तर का
चाय अंतराल था
जिसे कवि नायक कहे जाने वाले
एक दिवंगत कवि के शब्दों में
कहा जा सकता था- 'हरी घास पर क्षण भर'।

वहाँ कई कवि थे सजीव
जिनमें से एक ने पहना था
खूब चटख ललछौंहे रंग का कुरता
उसे घेर कर खड़े थे कुछ लोगबाग
जिनमें से 'कुछ थे जो कवि थे'
जैसा कि शीर्षक है
इधर के एक नए कवि के नए कविता संग्रह का
और कुछ ऐसे भी
जिनकी नेक नीयत थी कवि होने की
(नियति को क्या होगा मंजूर
यह और अलग बात !)
चटख कुरते वाला कवि आकर्षण का केन्द्र था
बोल भी वही रहा था सबसे ज्यादा
क्योंकि वह बड़ा कवि था
वह आया था बड़ी जगह से
उसके होने भर से
हो जाता था हर कार्यक्रम बड़ा
यह एक बड़ी चर्चित बात थी
साहित्य के समकालीन परिसर में
जबकि परिधि पर कुछ न कुछ लिखा जा रहा था लगातार
चर्चा से दूर और उल्लेख से उदासीन
(ओह , फिर याद आया वह दिवंगत कवि
अरे ! यायावर रहेगा याद !)

बड़े कवि को मिल चुके थे कई बड़े ईनाम
कई बड़े कवियों के
बड़े अंतरंग और बड़े तरल किस्से थे उसके पास
और वह आजकल
लिखना चाह रहा था संस्मरणों की एक बड़ी किताब
जो कि लिखे जाने से पूर्व ही
हो चुकी थी खासी मशहूर और लगभग पुरस्कृत
सब जन लगभग चुप
सब जन चकित
सब जन श्रोता
वक्ता वह केवल एक
और बीच - बीच में हँसी का एकाध लहरदार समवेत।

यह एक अध्याय था
कस्बे के एक साहित्यिक आयोजन के मध्यांतर का
जिसके बैनर पर लिखे थे
'राष्ट्रीय' और 'कविता' जैसे कई चिर परिचित शब्द
जिसकी सचित्र रपट तैयार कर ली गई थी उसकी पूर्णाहुति से पूर्व
किन्तु जिसे याद किया जाना था आगामी कई वर्षों तक
बड़ी जगह से आए
एक बड़े कवि के
चटख ललछौंहे रंग के कुरते के बावजूद

( इस आयोजन की
बाकी की बातें भी होंगी अति महत्वपूर्ण
किन्तु वे सब
अख़बारों और लघु पत्रिकाओं में यथाशीघ्र पठनीय )

शनिवार, 2 अप्रैल 2016

बचा रहे थोड़ा मूरखपन

कल रात सोने से पहले कुछ लिखा था वह आज यहाँ साझा है :


आज सुबह - सुबह मनुष्य के सभ्य होते जाने के बिगड़ैलपन की दैनिक कवायद के रूप 'बेड टी' पीते हुए उसे विश 'यू वेरी - वेरी हैप्पी फ़ूल्स डे' कह कर लाड़ जताया जिसको बाईस बरस के संगसाथ के बाद यह बात बताने कि जरूरत नहीं रह गई है कि ऐसे भी हम क्या - ऐसे भी तुम क्या ! कुछ देर बाद अभी परसों ही होली की छुट्टी बिताकर कालेज गई बेटी को फोन किया और इस खास दिन की बधाई दी। उसने बस एक ही बात कही- पापा मैं आपकी ही बेटी हूँ! बेटे को भी बिस्तर से 'वाकआउट' कराने के लिए इस दिन की 'विशेस' दीं और पता नहीं क्यों खुश होता रहा।
पौने दस बजे बजे नौकरी पर जाना हुआ; वो क्या है कि अपनी नौकरी ही कुछ इस किसिम की है कि जिसमें शामिल हुआ आदमी और कुछ समझा जाय या न समझा जाय लेकिन विद्वान और ज्ञानी अनिवार्यत: समझा जाता है। स्टाफ रूम में पहुँचा तो एक सहकर्मी दूसरे सहकर्मी से कुछ राय ले रहा था क्योंकि उसका वेतन- पेंशन का कुछ हिसाब किसी दफ़्तर में गड़बड़ाया हुआ चल रहा था। मुझे देखते ही चिंतित सहकर्मी को थोड़ी - सी आश्वस्ति -सी हुई। मुझे संबोधित करते हुए उसने कहा - 'सर, आप तो बुद्धिजीवी हैं , एक राय दीजिए कि...'। मेरा मन सहसा बल्लियों उछल गया। मैं कुर्सी पर बैठते - बैठते बिल्कुल सीधा हो गया और तपाक से उससे हाथ मिलाया ; दूसरे से भी और कहा कि -'भाई , तुम्हारी बात सुनकर मेरा मन प्रसन्न हो गया। वाकई मेरी कदर पहचानी तुमने ।आज के दिन मुझे बुद्धिजीवी कह कर मेरा दिन बना दिया। बधाई हो , मित्र आपको अंतरराष्टीय मूर्ख दिवस की बहुत - बहुत बधाई हो।'
कामकाज का दिन बीता ठीकठाक; रोजाना जैसा ही लेकिन छुट्टी के बाद घर वापसी में बाजार में रोजाना जैसा ही जाम लगा था। मेरे वाहन के आगे - आगे एक ट्रक रेंग जैसा रहा था जिसके पीछे एक शेर लिखा हुआ दिखा तो कामकाज की थकान से कुम्हलाया मन पुन: प्रसन्न हो गया :
गाड़ी नहीं है ये मोहब्बत का फूल है।
माल उतना लादिए जितना उसूल है।

तो , आज का यह पावन दिवस कुछ ही मिनट में बीत जाने को है और नई तारीख लग जाने वाली है। इससे पहले कि आज का पुण्यकाल समाप्त हो जाय हे समानधर्मा साथियो ! मेरा मत है कि अपने जीवन - जगत की गाड़ी पर ज्ञान और विद्वता का माल उतना ही लादिए जितना कि उसूल है ताकि राग- विराग- खटराग में मोहब्बत के फूल को खिलने के लिए खाद, पानी व हवा मिलती रहे और सचमुच बुद्धिजीवी कहलाये जाने के वास्ते थोड़ा - सा मूरखपन बचा रहे !

बुधवार, 22 जुलाई 2015

Poetic Chemistry of a Physicist

आज बहुत दिनों बाद नेट  पर अल्बर्ट आईंस्टीन पर यत्र - तत्र  बिखरा कुछ यूँ ही  पढ़ते - गुनते याद आया कि अभी बहुत दिन हुए नहीं ; इसी साल  की फरवरी के अंत में  अपने एक  सहकर्मी भौतिक विज्ञान के  प्राध्यापक  की किताब 'Special Theory of Relativity and Relativistic  Electromagnetism'  के लिए कुछ लिखा था। हालांकि उस लिखे में अपना लिखा कुछ  खास था नहीं। अपने साथी से मैंने यह भी कहा था कि फिजिक्स की  एकेडेमिक किस्म की किताब  में हिन्दी के इस मास्टर के लिखे का  भला क्या मतलब ? लेकिन , भाई का प्रेम और सतत आग्रह सो अंग्रेजी में  अपना हाथ बेहद तंग होते हुए भी कुछ  घसीट दिया था या यों कहें कि  अपनी रुचि के मुताबिक आईंस्टीन  के कहे पर गढ़े - पढ़े  कुछ कविता जैसे 'मैटर' को बस एक साथ संकलित करने जैसा कुछ कर  - सा दिया था ;  लीजिए ,वही ' आमुख' आज यहाँ  सबके साथ साझा है :




Poetic Chemistry of a Physicist  

A question that sometimes drives me hazy:
am I or are the others crazy?

This mortal world knows him as Albert Einstein, a physicist, an immortal scientist. He is best-known for his ‘Special and general theories of relativity’, ‘Photoelectric effect’ ‘Nobel prize’ and so many other intellectual contributions to realize and to make this word beautiful and a better place for all. Einstein is also known for his philosophical thoughts, his laughter, his wit, his quotable quotes and his remarkable sense of humor. He is most famous personality among the children of the world. His photographs and posters are so popular and familiar for almost each literate person. His presence is a very common for common folk. His name and fame is above and away of race, religion, language and political boundaries of continents, countries and communities.

Sit next to a pretty girl for an hour,
it seems like a minute.
Sit on a red-hot stove for a minute,
it seems like an hour.
That's relativity!

Was Albert Einstein a poet? Can we find his name in the long list of poets of the world? Answer of this type of quarry may be NO. But, he is a poet. We can remember his famous photograph with  Rabindra Nath Tagore. Though, there are various schools of thoughts to define the poetry but for people like us , poetry itself  is nothing but an art to see and show the feelings , heartfelt situations and ideas in the form , frame and even in fragmentations of verse. If we can seriously see the ‘stories’ and sayings of  this man we may be able to convince our self and others also that Einstein  was a ‘poet’. He was not a poet in the terms of poetics but the way of choosing words to incorporate an idea in a very texture of memorable sentences are enough to prove that this gem and  genius of  physics is deeply involved and indulged  in love of poetic chemistry of  almost rational ,rough and so called dry areas of scientific terrain and terminology  .

Do I believe in immortality?
No, and one life is more than enough for me!

So, let us take a look in the ‘mass and energy’ of poetry of Einstein.  An American  poet Michael R. Burch is a great lover of Einstein’s life , legends and likings. He has re- written the quotations of Einstein in the form of poetry without adding anything from his own side. These poems are ideas of a scientist and alphabetical shapes are given by a poet who loves, respects and feels him from the very core of his heart to reconstruct. In other words this companionship or what we call in Indian music ‘jugalbandi’ is notable and easy to remember. This is also an example to show that how scientific sensibility can be so simple and so satirical. Here are few samples of ‘poet’ Albert Einstein, please take a look :

Poetic Logic

Politics is for the present,
but an equation is for eternity.
Pure mathematics is, in its way,
the poetry of logical ideas.

Uncommon Sense

An empty stomach
is not a good political adviser,
yet anger dwells
only in the bosom of fools,
while "common sense"
is the collection of prejudices
acquired by age eighteen.

New Math

Concern for man and his fate
must always form the chief interest
of all technical endeavors.
Never forget this
in the midst of your diagrams
and equations.
Yet never over-worry
about your difficulties
in Mathematics.
I can assure you mine are still greater!

Education

It is a miracle that curiosity
survives formal education
and yet it is the supreme art
of the teacher to awaken joy
in creative expression
and knowledge.
Still, it sometimes seems
that "education" is what remains
after one has forgotten
everything he learned in school.  

Fickle Fame

If my theory of relativity is proven correct,
Germany will claim me as a German
and France will declare that I am a citizen of the world.

Should my theory prove untrue,
France will say that I am a German
and Germany will declare that I am a Jew.

(And if I could only remember the names of all these particles I'd be a botanist!)

Albert Einstein’s genius is marvelous and matchless. His sayings are so popular and used in day to day conversations of life. It makes him a scientist of our own arena and our times. He is not a stereotype scientist. He is live and lovable. I know that this book is not the book of literature, lyrics and based on a ‘lighter’ subject. This is the book of Physics and its theoretical and practical dimensions but the persona of  the great man Albert Einstein is so colorful like a rainbow on the horizon of science. Poetic presence and chemical bondage of  Einstein’s love for poetic expressions  is shared here by ‘order’ and consistent keen interest of the author of this book my learned colleague and ‘fragile’ friend Prof. Raj Kumar Tyagi. Thanks to him and very – very special thanks to you, my dear reader.



                                                    
            -Dr. Sidheshwer  Singh
                                                       Associate Professor : Hindi
                                                    

मंगलवार, 10 मार्च 2015

नहीं भूलूंगा अपनी राह

आज प्रस्तुत हैं ट्यूनिशियाई कवि , आलोचक और प्राध्यापक मोहम्मद ग़ाज़ी की तीन कविताओं के हिन्दी अनुवाद। ये कवितायें आधुनिक अरबी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिका 'बनीपाल' से  साभार ली गई हैं और ईसा जे. बोलात के अंग्रेजी अनुवाद पर आधृत है। आइए देखें - पढ़ें इन्हें :


तीन कवितायें : मोहम्म्द ग़ाज़ी

०१- एक सितारा

अपनी कलम पकड़ो और उकेरो एक सितारा
सो जाओ तत्पश्चात
सितारे के उग आयेंगे पंख
और भोर में
वह छोड़ जाएगा एक कोरा कागज़।

०२- घोड़े

जानते हैं
केवल घोड़े
हमारे दु:खों का रहस्य
वसंत के महिमामंडन में।

०३- भटकूंगा नहीं

नहीं भूलूंगा अपनी राह
अंधेरे में
जुगनू की चमक
करेगी मेरा पथप्रदर्शन।