मेरे सपनों में आते हैं
आड़ू , सेब , काफल और खुमानी के पेड़
पेड़ों के नीचे सुस्ताई हुई गायें
और उनके थनों से निकलता हुआ दूध .
मेरे सपनों में आते हैं
सीढ़ीदार खेत , रस्सियों वाले पुल
और पुल से गुजरते हुए स्कूली बच्चे .
मेरे सपनों में आते हैं
जंगल , झरने , शिखर
घास काटती हुई स्त्रियां
और बोझा ढोते हुए मजदूर .
मेरे सपनों में आते हैं
पहाड़ से आने वाले लोग
मेरे सपनों में आते हैं
पहाड़ को जाने वाले लोग .
मेरे सपनों में
अब नहीं आता है पहाड़
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !
( यह कविता वेब पत्रिका : http://www. hindinest.com के अंक - March 14‚ 2003 में प्रकाशित हो चुकी है.साथ लगा चित्र http://www.pahar.org से साभार )
9 टिप्पणियां:
मेरे सपनों में आते हैं
जंगल , झरने , शिखर
घास काटती हुई स्त्रियां
और बोझा ढोते हुए मजदूर .
bahut sunder
मेरे सपनों में
अब नहीं आता है पहाड़
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !
एक पूरी दुनिया जो हम छोड़ आए हैं उसकी अत्यन्त संवेदनशील स्मृति। उससे फ़िर न जुड़ पाने की मजबूरी को भी बड़ी खूबसूरती से रेखांकित किया। बहुत सुंदर।
ये सपने आते रहें बस।
एक कहानी हुआ करती थी हमारे कोर्स की किताब में कर्मनाशा की हार। मुझे पसंद थी। आपके ब्लॉग का नाम और कर्मानाशा पर लिखा गया दोनों उस कहानी की याद दिलाते हैं।
मेरे सपनों में
अब नहीं आता है पहाड़
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !
sahi. keval sapnon mein hi.
ghughuti basuti
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !
--गजब!! क्या बात है...आभार इस जागृति के लिए.
मेरे सपनों में आते हैं
जंगल , झरने , शिखर
घास काटती हुई स्त्रियां
और बोझा ढोते हुए मजदूर .
" you seems to be nature lover, beautiful presentation'
regards
सपनों में आते रहे पेड़-जंगल-पहाड़, ये आवश्यक है,,,,,, कभी इन सपनों की ताबीर मिलेगी ..... पेड़-जंगल-पहाड़ - हमारे चारों तरफ़ ,,,,, ये सपने बहुत ज़रूरी है ,,
huuk utthti hai apni zameen -apaney aasmaan ke liye ....
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