शनिवार, 4 अक्टूबर 2008

बहुत दिनों बाद




पहाड़ बहुत दिनों बाद उठा
पेड़ों ने आसमान छूने की होड़ लगाई
और नुकीली पत्तियों पर
जमने लगी उजली-उजली बर्फ़.

पहाड़ बहुत दिनों बाद हंसा
चटख गए कलियों के अधखुले होंठ
सहसा दहक गया रक्तिम बुरांश
और झील के पानी में उठी एक छोटी-सी लहर.

पहाड़ फ़िर गुमसुम हो गया
उसकी नसों में दौड़ने लगीं
धुआं उगलती गाड़ियां
और पीठ पर उचकने लगे नौसिखिए घुड़सवार.

पहाड़ बहुत दिनों बाद रोया
मैं ने बहुत दिनों बाद लिखी
पहाड़ पर एक कविता
पहाड़ ने बहुत दिनों बाद पढ़ी
पहाड़ पर एक कविता
और मेरे मुंह पर थूक दिया.

पहाड़ ने ऐसा क्यों किया
मैं सोचता रहा बहुत दिनों बाद तक।

7 टिप्‍पणियां:

एस. बी. सिंह ने कहा…

प्रकृति और अपने आस पास के परिवेश के प्रति हमारी उदासीनता को रेखांकित कराती बहुत सुंदर कविता।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और गहरी रचना. इसी तरह अगर हम पहाड़ों और नदियों एवं प्रकृति को नजर अंदाज करते रहे तो ये सब थूकेंगे हम पर और हम जान भी नहीं पायेंगे कि क्यूँ थूका.

बहुत उत्तम रचना!!

महेन ने कहा…

और पहाड़ के पास चारा भी क्या था। पीड़ादायक।

Ek ziddi dhun ने कहा…

pahad se judee behtreean kavitayen kyaon na ek saath rakhee jayen. senti hue bina.

बेनामी ने कहा…

Very good......

स्वप्नदर्शी ने कहा…

bahut achchee.

Tourist mentality jab bhee mere bheetar duniyaa jahaan ghoomate huye sar uThaatee hai, meri smriti me base paHaad use har baar kuchal dete hai.
Tourism snskriti par itnaa sateek,
sid, aapake paas sadhi huyee bhaashaa hai.

seema gupta ने कहा…

पहाड़ बहुत दिनों बाद रोया
मैं ने बहुत दिनों बाद लिखी
पहाड़ पर एक कविता
पहाड़ ने बहुत दिनों बाद पढ़ी
पहाड़ पर एक कविता
और मेरे मुंह पर थूक दिया.
"totaly a different kind of poetry on nature, read after a long time, appreciable'

regards