सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

प्रेम कविताओं का कोई भविष्य नहीं है ( ?)


तुम्हारा सामीप्य
जैसे अभी-अभी कोई प्रेम कविता पढ़ी है
उगंलियों की छुवन से फिसल रहें है शब्द
संगीत के आरोह-अवरोह से परे है इसकी लय
रूके हुए समय के वक्षस्थल पर
मैं सुन रहा हूं इसकी पदचाप !

तुम्हारा सामीप्य
बहुत धीरे-धीरे मेरे पास आता है
और एकाएक चला चला जाता है
हवा में टंगे रह जाते हैं
स्वागत मुद्रा में उठे हुए हाथ।

आलोचक कहते हैं
प्रेम कविताओं का कोई भविष्य नहीं है
क्या सचमुच मेरे भविष्य से अलग है
तुम्हारे सामीप्य का सुंदर - सुकोमल वर्तमान !

16 टिप्‍पणियां:

शायदा ने कहा…

आलोचक झूठ बोलते हैं।

महेन ने कहा…

प्रेम का तो है न तो प्रेम-कविता का भी रहेगा ही।

Vinay ने कहा…

वह आलोचक जो ऐसा बोलते हैं उनसे पूछो कितनी जूतियाँ सर पर पड़ीं कि कहते हो कि अंगूर खट्टे हैं!

बेनामी ने कहा…

प्रेम का तो है, कविताओं का नहीं पता :) ...

पारुल "पुखराज" ने कहा…

प्रेम कविताओं का कोई भविष्य नहीं है..kitni ajab aur ulat baat....alochnaa se parey hai ye vishay..

roushan ने कहा…

भरोसा ख़ुद पर रखिये आलोचकों पर नही.

एस. बी. सिंह ने कहा…

असल में आपके आलोचकों का ही कोई भविष्य नहीं नज़र आता। सुंदर कविता।

Ashok Pande ने कहा…

कौन आलोचक कह रहा है ऐसा! जूते की माला बना रहा हूं. नाम बताइए साब!

"कितना संक्षिप्त होता है प्रेम
कितना दीर्घ उसे भुला पाना"

"I want to do with you
What spring does to cherry blosssoms!"

नेरूदा ज़िन्दाबाद!

और आगे जाऊं?

अय मोहब्बत ज़िन्दाबाद!
(कर्टसी मुग़ल-ए-आज़म बरास्ता यूसुफ़ ख़ान)

Girish Kumar Billore ने कहा…

TO VARTMAAN TO HAI N

स्वप्नदर्शी ने कहा…

?????
aisee niraasha vo bhee alochak ke kahane par??

Udan Tashtari ने कहा…

आप भी किन के चक्कर में पड़ गये-आलोचक तो वो बोलते हैं जो उनसे मौका बुलवाता है. उनके हिसाब से तो नेट लेखन तो छोड़िये, नेट का भविष्य भी नहीं. :)

ravindra vyas ने कहा…

दोस्त, बस प्रेम किए जाअो और लिखे जाअो, बिना इसकी चिंता किए कि इन दोनों का कोई भविष्य है या नहीं?

रंजू भाटिया ने कहा…

प्रेम कविता कभी नही खत्म हो सकती .जिसने कहा ग़लत कहा

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

aalochak kahate rahe.n..na to prem kavitaen likhni banda hui hai.n aur na hi sujan-swajan samipya sukh...! aap prem kavitae.n likhate rahe.n..! ham sukhi hote rahe.nge

रंजना ने कहा…

वाह ! क्या बात कही है आपने.....पर जबतक प्रेम है प्रेम कवितायें रहेंगीं ही,इसमे शंशय व्यर्थ है.फ़िर भी यदि कोई यह मानता है तो उसे मूर्ख मानना चाहिए,और कुछ नही.

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

कविता में प्रयुक्त ' आलोचक ' की इतनी आलोचना कविता के सार्थक होने का प्रमाण है ! बधाई !