शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2008

सोने के पहले

सोने से पहले
मै खूब थक जाना चाहता हूं
ताकि आ जाए गहरी नींद
-सपनों से खाली निचाट दोपहर -सी नींद.

सोने से पहले
मैं लिख लेना चाहता हूं प्रेम कविताऍ
आत्मा की तह तक
उतार लेना चाहता हूं प्रेम की सुगंध.

सोने से पहले
मैं पढ़ लेना चाहता हूं अपनी किताबें
जिन्हें अभी तक
सिर्फ उलट -पुलट कर देखा भर है।

सोने से पहले
मैं देख लेना चाहता हूं
सोते हुए बच्चे के चेहरे पर मुस्कराहट ।

सोने से पहले
मैं ओढ़ लेना चाहता हूं उस बच्चे का चेहरा
ताकि अगली सुबह जब वह उठे
तो पहचान सके
कि यह वही दुनिया है
जिसे कल रात
वह सोने से पहले वह देख रहा था।

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

इत्ता काम करना चाहते हैं सोने से पहले!

पारुल "पुखराज" ने कहा…

bhaav hain..kaam to nahi....

Udan Tashtari ने कहा…

सोने से पहले
मैं ओढ़ लेना चाहता हूं उस बच्चे का चेहरा
ताकि अगली सुबह जब वह उठे
तो पहचान सके
कि यह वही दुनिया है
जिसे कल रात
वह सोने से पहले वह देख रहा था।

--वाह!! बहुत सुन्दर!

महेन ने कहा…

सिद्धेश्वर भाई ये अपने टाइप की कविता है।
खूब!

एस. बी. सिंह ने कहा…

सोने से पहले
मैं लिख लेना चाहता हूं प्रेम कविताऍ
आत्मा की तह तक
उतार लेना चाहता हूं प्रेम की सुगंध।

आपकी कविता की सुगंध में रात महक महक गई है।