सोमवार, 28 नवंबर 2011

जो सुनाई दे उसे गाओ

वेरा पावलोवा ( जन्म : १९६३ ) रूसी कविता की एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी कविताओं के अनुवाद दुनिया भर की कई भाषाओं में हो चुके हैं। अंग्रेजी के माध्यम से विश्व कविता की एक झलक से परिचित होने वाले हम जैसे लोगों के लिए अंगेरेजी में उपलब्ध उनका संग्रह  'इफ़ देयर इज समथिंग टु डिजायर : वन हंड्रेड पोएम्स'  है । इसमें संकलित कविताओं का अनुवाद वेरा के पति स्टेवेन सेम्योर ने किया है। उनकी कवितायें  कलेवर में बहुत छोटी हैं और वे बेहद छोटी समझी जाने वाली स्थितियों - मन:स्थितियों पर  लिखी गई हैं लेकिन कविता  से  जो कुछ बाहर आता है वह एक बड़ा , व्यापक ,तीक्ष्ण और मारक अनुभव जगत होता है। उनकी बहुत सी कवितायें आप पहले भी   कई  जगह पढ़ चुके  है। आइए आज पढ़ते हैं  दो और कवितायें :



वेरा पावलोवा की दो कवितायें
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)


01-निर्माण

प्रेम !
नहीं?
चलो इसका निर्माण करें
हो गया !
आगे?

चलो अब निर्मित करें:
      ध्यान
        कोमलता
          साहस
            ईर्ष्या
              तृप्ति
                 झूठ।

02-संवाद

-  मेरे लिए गाओ सबसे सुन्दर गान
-  मुझे  पता नहीं गीत के बोल
-  तो गाओ स्वरलिपियाँ
-  मुझे पता नहीं स्वरलिपियों का
-  तो बस यूँ गुनगुनाओ
-  भूल गई है धुन

अगर ऐसा है
तो अपना कान लाओ
मेरे कान के करीब
और जो सुनाई दे उसे गाओ।

5 टिप्‍पणियां:

रीनू तलवाड़ ने कहा…

Bahut Sundar :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति।

अनुपमा पाठक ने कहा…

As I am reading this poem here, a russian classmate is sitting beside me...; we are talking about this poem...
well rendered translation!

Sunil Kumar ने कहा…

तो बस यूँ गुनगुनाओ
-भूल गई है धुन
सुंदर अतिसुन्दर बधाई की परिधि से बाहर

राजेश उत्‍साही ने कहा…

कविता इतनी सरल भी हो सकती है। अद्भुत।