परसों, इतवार की सुबह नहान -नाश्ते के बाद जब धूप सेंकने का मन हुआ तो घर के आसपास ही पेड़ -पौधों से बतियाने का मन हो आया। गुनगुनी धूप में अपने निकट की मामूली चीजों को गौर से देखते हुए कुछ तस्वीरें मोबाइल में कैद कर ली थीं जिन्हें आज और अभी सबके साथ साझा करने का मन हो रहा है। आज एक बार फिर इन तस्वीरों को देखते - परखते -निरखते हुए यह भी लग रहा है कि कामकाज, दफ़्तर -फाइल, दाल-रोटी की आपाधापी और जुगाड़ -जद्दोजहद में अपने नजदीक की बहुत -सी मामूली चीजों का बड़प्पन अक्सर ध्यान में ही नहीं आता और बहुत सी अनोखी चीजें यूँ ही ओझल हो जाती है।प्रकृति अपनी मौज में अपनी चाल चलती रहती है। वह हमें पूरा अवसर देती है कि उसके साथ सहज संवाद स्थापित किया जाय। लेकिन होता यह कि हमारे ही पास समय नहीं होता और सौन्दर्य को देखने वाली आँखें उपयोगिता की परिभाषा में ही हर चीज को बाँधने - साधने की अभ्यस्त -सी हो जाती है।आज इन तस्वीरों को देखकर कुछ यूँ ही कविता जैसा लिख भी दिया है। अब जो भी है...आइए मिल कर देखें...
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सूरज ने बाँट दी अपनी गरमाई
दो फूल खिले एक कली मुसकाई
प्रकृति सजाती है अनुपम उपहार
हम हैं क्या सचमुच इसके हकदार!
कूड़े -कबाड़ में है तितली का वास
हम हैं क्या कर रहे अपने आसपास!
पीपल के पात पर ठहरा है पानी
क्या-क्या कहानियाँ रचे प्रकृति रानी!
धूप में विहँस रहा है नन्हा सितारा
हम सहेजें सुन्दरता काम यह हमारा!
10 टिप्पणियां:
सुन्दर तस्वीरों जैसा ही सुन्दर गीत !
बहुत खूबसूरत प्राकृतिक वर्णन और चित्र
यह तो करते ही रहना चाहिए।
बहुत ही खूबसूरत चित्रमयी प्रस्तुति।
पीपल के पात पर ठहरा है पानी
क्या-क्या कहानियाँ रचे प्रकृति रानी!
waah
सूर्य निकलने से कुछ खिल जाते है, कुछ छिप जाते हैं।
... bahut sundar !!!
पीपल के पात पर ठहरा है पानी
क्या-क्या कहानियाँ रचे प्रकृति रानी
waah waah .यह चित्र भी बेहद खूबसूरत है.
गीत सुन्दर है पर चित्र और बेहतर हो सकते थे ... थोडा out of focus हो गए हैं ...
इतने सजीव और बोलते हुए चित्र कि निशब्द कर गए. खूबसूरत चित्रमयी प्रस्तुति के लिए आभार.
सादर,
डोरोथी.
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