गुरुवार, 4 नवंबर 2010

घात लगाए बैठा है अंधकार का तेंदुआ खूंखार







उजास
(एक कविता : एक आस)

हर ओर एक गह्वर है
एक खोह
एक गुफा
जहाँ घात लगाए बैठा है
अंधकार का तेंदुआ खूंखार.
द्वार पर जलता है मिट्टी का दीपक एक.
जिसकी लौ को लीलने को
जीभ लपलपाती है हवा बारंबार.

बरसों - बरस से
चल रहा है यह खेल
तेंदुए के साथ खड़ी है
लगभग समूचे जंगल की फौज
और दिए का साथ दिए जाती है
कीट - पतंगों की टुकड़ी एक क्षीण
जीतेगा कौन ?
किसकी होगी हार ?

हमारे - तुम्हारे दिलों में
जिन्दा रहे उजास की आस
और आज का दिन बन जाए खास !

* 'कर्मनाशा'  के सभी  हमराहियों को दीवाली की मुबारकबाद !.

6 टिप्‍पणियां:

Deepak chaubey ने कहा…

दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्दचित्र हैं!
--

प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।

अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।

आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आज का दिन आपके लिये खास बन जाये, दीवाली की शुभकामनायें।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर ...दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

अनुपमा पाठक ने कहा…

jeet to deep ki hi hogi!!!
sundar vimb!!!
deep parv ki shubhkamnayen!!!

Dorothy ने कहा…

उम्मीद का उजास ही तो अंधेरों में खोए पथों को आलोकित करता है और हमारे जीवन को हर परिस्थिति में गतिमान रखता है. एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.