बुधवार, 29 सितंबर 2010

नींद और सृजन : वेरा पावलोवा की दो कवितायें


कविता की कोई खास समझ नहीं मुझे । लेकिन जब भी कहीं कुछ अपने मन का , अच्छा - सा पढ़ने को मिल जाता है तो मन करता है कि हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया में इत - उत ओर फैले असंख्य कविता प्रेमियों के साथ साझा किया जाय। बस यही सोचकर कभी कभार अनुवाद कर लिया करता हूँ। हिन्दी के कुछेक मशहूर विद्वानों ने कहीं कहा है कि अनुवाद और वह भी कविता का अनुवाद , एक नीरस - सा काम है और एक तरह से कविता के मौलिक आस्वाद का विपर्यय भी। खैर जो भी हो अनुवाद मेरे वास्ते एक सेतु है जिस पर चलते हुए अन्य भाषा की कविता - सदानीरा की सरसता से किंचित निकटता बनी रहती है। बहुत आभारी हूँ कि इस ब्लॉग पर और अन्यत्र भी मेरे अनुवाद कर्म को ठीकठाक माना गया है। अतएव , आभार , शुक्रिया दिल से !

वेरा पावलोवा ( जन्म : १९६३ ) की कुछ कवितायें आप कुछ समय पहले 'कर्मनाशा' व 'कबाड़ख़ाना' के पन्नों पर पढ़ चुके हैं । समकालीन रूसी कविता की इस सशक्त हस्ताक्षर से अपना परिचय बहुत पुराना नहीं है किन्तु छोटी - छोटी बातों और नितान्त मामूली समझे जाने वाले प्रसंगों को उन्होंने बहुत ही छोटे  काव्य - कलेवर में उठाने की जो महारत हासिल की है वह एक बड़ी बात है। वेरा का एक संक्षिप्त परिचय यहाँ है। आइए आज बार फिर पढ़ते - देखते हैं उनकी दो कवितायें :

वेरा पावलोवा की दो कवितायें
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

०१- नींद

कुछ इस तरह
सो रही है एक लड़की
जैसे किसी के सपनों में
चलती चली जा रही हो दबे पाँव ।

एक औरत
कुछ इस तरह सो रही है
मानो आने वाले कल से
शुरू होने जा रहा हो कोई युद्ध।

एक बूढ़ी स्त्री
इस तरह सो रही है
जैसे कि बहाना कर रही हो मृत्यु का
इस उम्मीद में कि उसे बिसार देगी मौत
और चली जाएगी नींद के सीमान्त की ओर।

०२- सृजन

अनश्वर करो मुझे क्षण भर के लिए :
बर्फ़ के फाहे लो मुठ्ठी भर
और उसके भीतर मूर्त करो मेरा स्थापत्य।

अपनी गर्म और खुरदरी हथेलियों से
सँवारो मुझे तब तक
जब तक कि मेरे भीतर से
प्रकट न होने लग जाये प्रकाश।

4 टिप्‍पणियां:

अजेय ने कहा…

कविता हो तो ऐसी हों !

अनुवाद तो लग ही नही रहा.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अतिसुन्दर वर्णन मनोदशाओं का।

पारुल "पुखराज" ने कहा…

जैसे कि बहाना कर रही हो मृत्यु का
इस उम्मीद में कि उसे बिसार देगी मौत

anuvaad aate rehne chahiye

शरद कोकास ने कहा…

बहुत बढ़िया अनुवाद है सिद्धेशवर भाई ।