आज हमारे घर में , पड़ोस में और अपने आसपास जन्माष्टमी है। कुछ लोगों ने कल भी मनाई थी। आज अपन मना रहे हैं। मन्दिर में सजावट है। अभी पड़ोस का बालक बालकृष्ण का रूप धरकर मिलने आया था। हमने उसके दर्शन किए और खुश हुए। आज दिन में नज़ीर अकबराबादी की कालजयी रचना 'कन्हैया का बालपन' पढ़ा और खुश हुए। अभी थोड़ी देर पहले इसी रचना के चुनिंदा अंशों को संगीतबद्ध रूप में सुना और खुश हैं। आइए अपनी खुशी सबके साथ साझा करते है और जन्माष्टमी की खुशियों को साहित्य - संगीत की जुगलबंदी के साथ द्विगुणित करते हैं :
शब्द : नज़ीर अकबराबादी
स्वर: उस्ताद अहमद हुसैन व उस्ताद मोहम्म्द हुसैन
क्या - क्या कहूं मैं कृष्न कन्हैया का बालपन।
ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या- क्या कहूँ .......
उनको तो बालपन से ना था काम कुछ जरा।
संसार की जो रीत थी उसको रखा बचा।
मालिक थे वो तो आप ही, उन्हें बालपन से क्या।
वाँ बालपन जवानी बुढ़ापा सब एक सा।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या - क्या कहूँ .......
बाले हो ब्रजराज जो दुनिया में आ गये।
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये ।
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गये।
इक ये भी लहर थी जो जहाँ को दिखा गये ।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या - क्या कहूँ .........
सब मिल के यारो कृष्न मुरारी की बोलो जै।
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै।
दधिचोर गोपीनाथ बिहारी की बोलो जै।
तुम भी 'नज़ीर' कृष्न मुरारी की बोलो जै।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन ।
क्या - क्या कहूँ .....
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( जन्माष्टमी पर अपना एक संस्मरणात्मक आलेख 'स्मृतियों का राग मद्धम ' वेब पत्रिका ' अभिव्यक्ति' पर प्रकाशित हुआ है .)
3 टिप्पणियां:
योगीराज श्री कृष्णचन्द्र महाराज की जय हो!
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नजीर अकबराबादी को नमन!
वाह, बहुत अच्छा।
bahut badhiya prastuti....vaah.
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