आज अपनी कैसेटॊ के कबाड़ में से एक कैसेट निकाली गई है और उसकी गर्द पोंछकर उस दिन / उन दिनों को याद किया गया है जब उसे खरीदा गया था। कैसेट पर तारीख पड़ी है : अल्मोड़ा -२१ जून १९९३. यह भी तमाम तारीखों की तरह एक तारीख भर है- एक तिथि , एक दिनांक, बस और क्या? लेकिन अपने तईं यह दिन एक तिथि भर नहीं है। उस समय तीन सप्ताह पहले ही अपना विवाह हुआ था और अपन हिमालयी यात्रा पर थे. इस दिन को दो खास वजहों से याद करते हैं हम । पहला तो यह कि जिस होटल में अपन रुके थे वहाँ के खटमलों ने रात भर सोने नहीं दिया था और दूसरा यह कि लाला बाजार की एक छोटी - सी दुकान से एक कैसेट खरीदी थी : मधुशाला।
मधुशाला : हाँ यह वही किताब थी जिसे दसवीं में पढ़ते समय लगभग कंठस्थ कर लिया था और स्कूल की अंताक्षरी में अपनी धूम मची हुई थी। यह देख चाचा ने किताब छिपा दी थी कहीं लड़का बिगड़ न जाय , वैसे भी हाईस्कूल में है , खैर वह तो एक लम्बी कथा है। आज तो बस्द यही कहना है अब तो सारा संगीत कंप्यूटर और मोबाइल की मेमोरी में है सो कबाड़ में से कैसेट खोजी गई है और मधुशाला को याद किया गया है। ऐसा क्यों भला? आज ऐसा क्या खास है? आज अखबार में भी कोई जिक्र नहीं !
आज २७ नवम्बर को बच्चन जी को उनके जन्मदिन पर बहुत आदर के साथ याद करते हुए सुनते हैं 'मधुशाला'
मदिरालय जाने को घर से
चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?'
असमंजस में है वह भोलाभाला;
अलग-अलग पथ बतलाते सब
पर मैं यह बतलाता हूँ-
'राह पकड़ तू एक चला चल,
पा जाएगा मधुशाला'।
स्वर : बच्चन जी और मन्ना डे
संगीत : जयदेव
8 टिप्पणियां:
बच्चन जी के जन्म दिवस उनकी याद को नमन!!!
बच्चन जी को शत शत नमन । आपका भी धन्यवाद्
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली,
हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर,
भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने
छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते,
भारत पावन मधुशाला।।
हरिवंश राय बच्चन जी को शत्-शत् नमन ।
हरिवंश राय बच्चन जी को उनके जन्मदिवस पर शत शत नमन !
याद दिला कर बच्चन और मधुशाला
दादा आपने तो रविवार मना डाला
कॉलेज के दिन थे और ज़िन्दगी बड़ी मज़े से गुज़र रही थी. तब भविष्य की इतनी फ़िक़्र भी नहीं होती थी. एक पडौसी के घर मधुशाला का रेकॉर्ड बजता था और जी चाहता था कैसे थी ये कैसेट पर मिल जाए. बाद में पिताजी ने एक कॉलेज के बाद दिन भर मटरग़श्ती करते अपने बेटे यानी मुझे एक परिजन की अप्लायेंसेज़ की नई दुकान के काउंटर पर ख़ड़ा करवा दिया.उन दिनों रेकॉर्ड से कैसेट बनवाने का धधा ख़ूब फलफूल रहा था...सो मुझे जैसे पिता की ज़बरदस्ती में भी एक नेक काम मिल गया कैसेट रेकॉर्ड कर देने का..सो सुनने का लाभांश तो मिल ही जाता था. तो उस दौरान मैने पहली रेकॉर्डिंग मधुशाला और बच्चन के स्वर में बच्चन (जिसमें बच्चनजी की कविताएँ अमितजी के स्वर में रेकॉर्ड हुईं थीं) को रेकॉर्ड किया था.जब भी उस शोरूम में मौक़ा मिलता तो बस मधुशाला ही बजा दिया करता. आज इस बात को तक़रीबन उनतीस बरस हो गए लेकिन मधुशाला का वे रेकॉर्डेड बीस बंद मुझे अब भी मुखाग्र याद हैं और उसमें जयदेव के निबध्द इंटरल्यूड्स भी. ख़ास कर इस एलबम का उसका बी साइड जिसकी आमद छोटे से जीवन में कितना प्यार करूं पी लूँ हाला....अदभुत है..मार्मिक है...झकझोरने वाला है.....ज़िन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत समय की याद आज बच्चन जी के बहाने हो आई...साधुवाद दादा आपका.
कल से चौथी बार सुनने के बाद लगा टीपा नहीं तो गुस्ताखी होगी।
शाम को टीपता कैसे…होश तो अब आया है!!
शुक्रिया
Manna dey ji ki awaaz mein pahali baar suna.
Bahut bahut abhaar.
सुन्दर... मधुशाला अब इंग्लिश में भी...
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