गुरुवार, 26 नवंबर 2009

नैना मिलाइके..( एक बार फिर ) शामिलबाजे में..


* आज 'कर्मनाशा' के पिछले पन्नों को पलटकर देखते हुए याद आया कि बहुत दिन हुए अपना पसंदीदा संगीत आपके साथ साझा किए हुए.!
ऐसा क्यों हुआ होगा भला ?


* क्या इसलिए कि इस बीच काम अधिक रहा ? क्या इसलिए कि इस बीच यात्रायें बहुत रहीं ? क्या इसलिए कि संगीत और शायरी के लिए अलाटेड सुबह - सुबह का वक्त दूसरी चीजों की भेंट चढ़ गया ? क्या इसलिए कि इस बीच पढ़ने - लिखने के काम ने कुछ गति पकड़ी है ? क्या इसलिए कि आलस्य कुछ कम हुआ है ? क्या इसलिए कि मन दूसरी चीजों में उलझा रहा ?


* खैर , जो भी हो संगीत सुना भी कम गया और सझा भी कम ही किया गया। ऐसा ही कुछ शायरी के साथ भी हुआ है..।


* आज मन है कि अपना पसंदीदा संगीत एकाधिक बार आपके साथ साझा किया जाय। इस क्रम में सबसे पहले हिन्दी - उर्दू की साझी शायरी और संगीत के बाबा अमीर खुसरो साहब की रचना 'नैना मिलाइके..' की बात करते हैं। सभी जानते हैं कि यह एक ऐसी रचना है जिसे संगीतकारों ने संभवत: सबसे अधिक गाया है। इसके कई - कई रूप हमारे निकट प्रचलित हैं। कई - कई आवाजें इसे गा - गुनगुना कर धन्य हुई हैं और हमारे कानों को उनके होने की सार्थकता का अहसास कराया है।


* नैना मिलाइके..' के कई रूप हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में प्रस्तुत किए गए हैं। आज से कुछ समय पूर्व ' नैना मिलाइके..' का आबिदा परवीन का गाया वर्जन 'कबाड़खा़ना' पर प्रस्तुत किया गया था जो अब 'लाइफलागर' की कृपा से उड़ गया है। लाइव ट्रैफिक फ़ीड अक्सर बताता है कि इसको वहाँ तलाश किया गया था ( और नहीं पाया गया होगा !) सो , अब आज 'कर्मनाशा' के शामिलबाजे में अपने स्तर पर खोई हुई - सी चीज को सुनते हैं और मन ही मन कुछ बुनते - गुनते हैं...


* और क्या कहा जाय

बस सुनें

अमीर खुसरो की यह रचना (आबिदा जी कहाँ - कहाँ की, किन - किन कवियों की कविता की सैर कराई है इसमें! )
और ..

आबिदा परवीन का स्वर !





वैसे , आप की क्या राय है ? जल्द ही कुछ और स्वरों में ' नैना मिलाइके..


4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जो भी वजह हो, आनन्द आ गया आबिदा परवीन को सुनकर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया!
बहुत दिनों बाद कर्णप्रिय संगीत सुनने को मिला!
धन्यवाद!

पारुल "पुखराज" ने कहा…

नदी किनारे धुआँ उठे
मै ज़ानू कुछ होए
जिस कारण मै जोगन बनी
वही न जलता होए ....
क्या बात है ...जिस मौज में आबिदा गातीं हैं ...जो आलम तारी होता है ...क्या कहा जा सकता है उसपे ...ग़ज़ब अधिकार से गुहार लगाती हैं... ....अद्भुत...

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह लाजवाब अबिदा प्रवीन की आवाज़ सुने कई दिन हो गये थे धन्यवाद। आज मेरे ब्लाग की साल गिरह है और जब मैने देखा आपकी सब से पहली टिप्पणी थी मेरे ब्लाग पर जो मेरे लिये भाग्यशाली रही। ये मैने बाद मे देखा और पोस्ट पर आपका धन्यवाद भी नहीं कर सकी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद्