अभी कुछ देर पहले कुछ पढ़ते - पढ़ते मन हुआ कि इस कविता का अनुवाद अभी बस अभी किया ही जाय और हो गया। अब जैसा भी बन पड़ा है..आइए देखते - पढ़ते हैं पोलैंड की मशहूर कवयित्री हालीना पोस्वियातोव्सका (१९३५ - १९६७) की यह कविता ( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह ):
लिपस्टिक
मैं जबसे तुमसे मिली हूँ
अपनी जेब में एक लिपस्टिक रखने लगी हूँ
कितनी बेवकूफी से भरा काम है
लिपस्टिक साथ लेकर चलना.,
जब तुम मेरी तरफ संजीदगी से देखते हो
जैसे कि तुम मेरी आँखों में
कोई गॊथिक चर्च देख रहे होते हो.
लेकिन मैं कोई पूजा की जगह नहीं हूँ
बल्कि मैं तो कोई जंगल हूँ
लेकिन मैं कोई पूजा की जगह नहीं हूँ
बल्कि मैं तो कोई जंगल हूँ
या घास का मैदान .
मैं तुम्हारे हाथों में दबी पत्तियों की सरसराहट हूँ.
हमारे पीछे एक छुटकी नदी
मैं तुम्हारे हाथों में दबी पत्तियों की सरसराहट हूँ.
हमारे पीछे एक छुटकी नदी
लड़खड़ाती हुई बहती है
यह समय की नदी हो जैसे
और तुम इसे अपनी अंगुलियों के रास्ते बहने देते हो
इसके बहाव में कभी नहीं डालते हो जाल.
और जब मैं तुम्हें
यह समय की नदी हो जैसे
और तुम इसे अपनी अंगुलियों के रास्ते बहने देते हो
इसके बहाव में कभी नहीं डालते हो जाल.
और जब मैं तुम्हें
अपने अधबने होठों से कहती हूँ अलविदा
तो वे रह जाते हैं अनछुए
लेकिन जब से मैंने जाना है
कि बहुत सुन्दर है तुम्हारा मुखारविन्द
तब से मैं जेब में लिपस्टिक साथ लिए चलती हूँ।
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( हालीना पोस्वियातोव्सका की पाँच कवितायें यहाँ देखी - पढ़ी जा सकती हैं )
तो वे रह जाते हैं अनछुए
लेकिन जब से मैंने जाना है
कि बहुत सुन्दर है तुम्हारा मुखारविन्द
तब से मैं जेब में लिपस्टिक साथ लिए चलती हूँ।
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( हालीना पोस्वियातोव्सका की पाँच कवितायें यहाँ देखी - पढ़ी जा सकती हैं )
6 टिप्पणियां:
बेहद भावपूर्ण रचना । बधाई
अन्य भाषाओं की कविताओं का इतना सहज रूपान्तर । आभार ।
यहाँ प्रस्तुत कवितायें तो दुर्लभ कवितायें है हम जैसे कम पढ़ने वाले लोगों के लिये ।
वाह...बहुत बढ़िया!
सुन्दर अनुवाद है जी!
भारत में तो महिलाएँ के ब्लाउज में जेब नही होती है! यहाँ तो पर्स में लिप-स्टिक सभी महिलाएँ रखती हैं।
जैसे कि तुम मेरी आँखों में
कोई गॊथिक चर्च देख रहे होते हो.
... सुन्दर...
पढ़कर आनंद आ गया
बहुत अच्छा अनुवाद है भैया जी।
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