सोमवार, 3 नवंबर 2008
कल याद का अब्र उमड़ा था और बरसा भी
याद का अब्र है उमड़ेगा बरस जाएगा.
वक्त के गर्द को धो-पोंछ के रख जाएगा.
कल एक संयोग के चलते पूरा दिन अपने विश्वविद्यालय में बिताने का मौका मिला. हाँ, उसी जगह जिस जगह अपने दस बरस (मैं केवल वसंत नहीं कहूंगा ,इसमें पतझड़ से लेकर सारे मौसम शामिल हैं) बीते और आज भी स्मॄति का एक बड़ा हिस्सा वहां की यादों से आपूरित - आच्छादित है. यह कोई नई और विलक्षण बात नहीं है. अपनी - अपनी मातॄ संस्थाओं में पहुंचकर सभी को अच्छा -सा , भला-सा लगता होगा. कल हालांकि इतवार था और सब कुछ लगभग बन्द-सा ही था. केवल खुला था तो प्रकॄति का विस्तार और गुजिश्ता पलों का अंबार.मौसम साफ था,धूप खिली हुई थी और नैनीताल के पूरे वजूद पर चढ़ती - बढ़ती हुई सर्दियों की खुनक खुशगवार लग रही थी. दुनियादारी के गोरखधंधे से लुप्तप्राय - सुप्तप्राय मेरे भीतर के 'परिन्दे' इधर से उधर फुदक रहे थे और मन का मॄगशावक कुलांचे भरने में मशगूल था. बहुत सारी बातें /किस्से / 'कहानियां याद-सी आके रह गईं.' -
मन की सोई झील में कोई लहर लेगी जनम ,
छोटा -सा पत्थर उछालें अजनबी के नाम.
जब कयामत आएगी तो मैं बचाना चाहूंगा,
उसकी खुशबू,उसके किस्से,उस परी के नाम.
तब 'वे दिन' बहुत छोटे -छोटे थे और अपने पास बातें बहुत बड़ी -बड़ी थीं. कितनी-कितनी व्यस्तता हुआ करती थी उन दिनों .सुबह पहने जूतों के तस्में रात घिरने पर होस्टल लौटकर ही खुलते थे. कभी यह काम तो कभी वह - और आलम यह कि सब कुछ हो रहा है बस पढ़ाई-लिखाई भी परंतु थीसिस लिखने के काम पर अघोषित विराम -सा लगा है - बहुत कठिन है डगर पी-एच०डी० की. उस वक्त लगता था कि अगर आसपास , इर्द-गिर्द कुछ रंगीन , रेशमी - रेशमी,रूई के फाहे जैसा है तो कुछ ऐसा भी है जिसके रंग बदरंग हो चले हैं , रोयें - रेशे उधड़ रहे हैं और ऐसी 'झीनी -झीनी बीनी चदरिया' को 'मुनासिब कार्रवाई' के जरिए तत्काल एक कामयाब रफूगरी और तुरपाई की सख्त दरकार है-
जबकि और भी बहुत कुछ है
अपने इर्दगिर्द - अपने आसपास
कुछ सूखा
कुछ मुरझाया
कुछ टूटा
कुछ उदास !
खैर, कल याद का अब्र उमड़ा था और बरसा भी और याद आता रहा यह गीत. आप सुनिए -हिन्दी रवीन्द्र संगीत के अलबम 'तुम कैसे ऐसा गीत गाते चलते' से 'वो दिन सुहाना फूल डोर बंधे...' स्वर है सुरेश वाड़कर और ऊषा मंगेशकर का.
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10 टिप्पणियां:
behatareen post!!
bahut sundar geet....! aur in yado.n ke zikra se bahut kuchh yaad dila diya aap ne
जब कयामत आएगी तो मैं बचाना चाहूंगा,
उसकी खुशबू,उसके किस्से,उस परी के नाम.
waaaaahhh
सुकूनबख्श ! बहुत उम्दा पोस्ट.
"नैना दीवाने ..इक नहीं मानें ...." धुन सुन कर याद आ गया .... I
वाह क्या पोस्ट लिखी है आपने...लाजवाब...नैनीताल में बिताये दिन याद आ गए...
नीरज
याद का अब्र है उमड़ेगा बरस जाएगा.
वक्त के गर्द को धो-पोंछ के रख जाएगा.
bahut sundar umda post. dhanyawad.
हमेशा की तरह बढिया। एक शेर याद आ गया-
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इस लिए सुन के भी अनसुनी कर गया,
तेरी यादों के भटके हुए कारवां दिल के ज़ख्मों का दर खटखटाते रहे।
apne college mein wapas jana aksar sukhad rahta hai sukh dukh sab nostalgia ke roop mein umde padte hain..
udaasee bhari khushi
yadon ki jheel se nikla chittha achha laga.
Apne shaher ke baare mai dekh sun aur padha ke bahut achha lagta hai. apni aur bhi nainital se judi yaadon ko humare sath bhi bantiyega.
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