चाँद ने क्या - क्या मंजिल कर ली , निकला ,चमका डूब गया,
हम जो आँख झपक लें , सो लें, ऐ दिल हमको रात कहाँ !
- इब्ने इंशा
बेघर बे - पहचान
दो राहियों का
नत - शीश न देखना - पूछना ।
शाल की पंक्तियों वाली
निचाट -सी राह में
घूमना , घूमना , घूमना ।
-नामवर सिंह
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कई बार यूँ ही देखा है
ये जो मन की सीमारेखा है.......
गायक - मुकेश
संगीतकार - सलिल चौधरी
गीतकार -योगेश
फ़िल्म- रजनीगंधा
5 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया..मेरे पसंद का गीत. आभार.
बहुत सुंदर.... सब मिल जुल कर... बढ़िया पोस्ट है भाई.
चाँद ने क्या - क्या मंजिल कर ली , निकला ,चमका डूब गया,
हम जो आँख झपक लें , सो लें, ऐ दिल हमको रात कहाँ !
" sach mey ek udasee chu gye..... maire mn kee seema rekha hai.... ye geet muje bhe pasand hai.."
Regards
munpasand geet v post
हम जो आँख झपक लें , सो लें, ऐ दिल हमको रात कहाँ !
बड़ी मुद्दत से कोई ख्वाब नहीं देखा हमने..
हाथ रख दो मेरी पलकों में की नींद आ जाए..
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