शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

एक उन्मन - उदास त्रिवेणी








चाँद ने क्या - क्या मंजिल कर ली , निकला ,चमका डूब गया,
हम जो आँख झपक लें , सो लें, ऐ दिल हमको रात कहाँ !


- इब्ने इंशा


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बेघर बे - पहचान
दो राहियों का
नत - शीश न देखना - पूछना ।
शाल की पंक्तियों वाली
निचाट -सी राह में
घूमना , घूमना , घूमना ।


-नामवर सिंह


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कई बार यूँ ही देखा है
ये जो मन की सीमारेखा है.......



गायक - मुकेश
संगीतकार - सलिल चौधरी
गीतकार -योगेश
फ़िल्म- रजनीगंधा

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया..मेरे पसंद का गीत. आभार.

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत सुंदर.... सब मिल जुल कर... बढ़िया पोस्ट है भाई.

seema gupta ने कहा…

चाँद ने क्या - क्या मंजिल कर ली , निकला ,चमका डूब गया,
हम जो आँख झपक लें , सो लें, ऐ दिल हमको रात कहाँ !

" sach mey ek udasee chu gye..... maire mn kee seema rekha hai.... ye geet muje bhe pasand hai.."

Regards

पारुल "पुखराज" ने कहा…

munpasand geet v post

हम जो आँख झपक लें , सो लें, ऐ दिल हमको रात कहाँ !

पुनीत ओमर ने कहा…

बड़ी मुद्दत से कोई ख्वाब नहीं देखा हमने..
हाथ रख दो मेरी पलकों में की नींद आ जाए..