गुरुवार, 11 सितंबर 2008

'रसिया को नार बनाओ री'...........


आज कई दिनों की गैरहाजिरी के बाद फ़िर उपस्थित हुआ हूं. कामकाज, दफ़्तर-फ़ाइल,दाल रोटी का हिसाब-किताब इतना विविध और बिखरा हुआ है कि ब्लाग पर कुछ लिखने और कुछ प्रस्तुत करने की फ़ुरसत कम ही मिल पा रही है.पिछले सप्ताह मैंने 'कर्मनाशा' पर बहुत संकोच के साथ पहली बार संगीत प्रस्तुत करने की हिम्मत जुटाई परन्तु देखता क्या हूं कि इसे संगीत प्रेमियों और पारखियों द्वारा पसंद किया गया.यह निश्चित रूप से मेरे जैसे नौसिखुए और नेपथ्य में रहने वाले इंसान के लिए आह्लादकारी है और आगे की राह बताने वाला भी है. मेरी पोस्ट जिस-जिस को सुकून और आनंद के एक कतरे का हजारवां हिस्सा भी दे पाई हो, मैं उन सभी के प्रति आभारी हूं.

आज एक गीत प्रस्तुत है जो मेरे घर में पिछले कई महीनों से सुबह-सुबह बजता है तथा जिसे सुनकर दिन भर के इनकमिंग और आउटगोइंग काल्स रूपी उठापटक,भागदौड़ को झेलने के लिए अपनी देह और दिमाग की बैटरी चार्ज होती है. यह गीत है - 'रसिया को नार बनाओ री' जिसे कल्पना झोकरकर जी ने गाया है.Rasiya-A Cascade of Love नामक अलबम में संग्रहीत यह रचना कान्हा और राधा के अनुराग की उस रसवंती थाती से हमें जोड़ती है जो जयदेव, विद्यापति,सूरदास,मीरा, रसखान,बिहारी,रत्नाकर,नजीर अकबराबादी, भारतेन्दु, हरिऔध,धर्मवीर भारती और अन्यान्य कवियों, कलाकारों गायकों की प्रतिभा का स्पर्श करती हुई आज हम तक पहुंची है जिसे अगली पीढ़ी तक विनम्रतापूर्वक पहुंचाने का दायित्व हम सबका है.

मामासाहेब कृष्णराव मुजुमदार की प्रतिभावान पुत्री और शिष्या कल्पना जी ग्वालियर घराने की सुरीली परंपरा का एक रत्न लेकर आई हैं जो मुझे बहुत प्रिय है, उम्मीद है सुनने वाले भी निराश न होंगे। अब और लिखत-पढ़त का काम नहीं है. अब तो यही किया जाय कि बस्स सुना जाय- 'रसिया को नार बनाओ री'...........



( परिचय और चित्र कल्पना झोकरकर जी की वेबसाइट http://www.kalpanazokarkar.com से साभार )


9 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

bahut pasand kii cheez ...

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

आपने तो अभिभूत ही कर दिया सिद्धेश्वर जी !इतनी मर्मस्पर्शी बंदिशें सुनवाने के किए हार्दिक बधाई !आपकी पसंद स्तरीय है ! सुधी श्रोता ही तो गायक का अन्तिम सत्य है !

महेन ने कहा…

तीनों एक साथ सुने। यह भी अद्भुत है। आप सचमुच सिद्ध हैं।

बेनामी ने कहा…

परमानन्द आ गया साहब।
पहले "राधे रानी..." सुना और फिर रसिया।
इस अलबम के बाकी रसिया भी सुनवाइये।

अमिताभ मीत ने कहा…

गुरुदेव !! कुछ कहूँगा नहीं ..... उस स्थिति में नहीं हूँ .... दया बनी रहे ... बस.

एस. बी. सिंह ने कहा…

रसिया को नार बनाओ री ......वाह सिद्धेश्वर जी आपने रसार्द्र कर दिया. कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें....http://kavitavarta.blogspot.com

Ashok Pande ने कहा…

उत्तम संगीत बाऊजी!

PREETI BARTHWAL ने कहा…

बहुत ही सुन्दर संगीत सुनवाया आपने इसके लिए आपका धन्यवाद।

संजय पटेल ने कहा…

बड़ी बहन कल्पनाजी के बारे में पढ़ कर आनंदित हूँ.कल्पना दीदी ने लम्बी यात्रा की है . मामा साहब मैरिस कॉलेज लख़नऊ में रहे और पेशे से इंजीनियर थे. देवास रियासत में मुलाज़िम रहे तब सान्निध्य मिला सुरों के बादशाह और तबियत से परशुराम उस्ताद रज्जब अली ख़ाँ साहब का. दोस्ती थी कुमार गंधर्व से जो उन दिनो क्षय रोग से पीड़ित थे.मित्र को मुम्बई से अपने साथ इन्दौर ले आए. कल्पनाजी सहित चार बेटियाँ थीं घर में सो पत्नी ने कहा कि जनश्रुति है कि टीबी का मरीज़ घर में हो तो वह रोग जानलेवा हो सकता है , अपने यहाँ तो चार बच्चियाँ हैं.मामा साहेब बोले दोस्त बचे और अपनी बच्चियों की जान भी चले जाए तो क्या हर्ज़ है ,कुमार तो मेरे साथ ही रहेगा.फ़िर कुमारजी स्वास्थ्य लाभ के लिये देवास बस गए.

कल्पना जी आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता के शास्त्रीय गायन एवं सुगम संगीत दोनो विधाओं की स्वर्ण-पदक विजेता है.दो बार सवाई गंधर्व संगीत समारोह (पुणे) में शिरक़त कर चुकीं है.पं.भीमसेन जोशी द्वारा अपनी दिवंगत पत्नी की स्मृति में स्थापित प्रथम वत्सलाताई जोशी पुरस्कार से नवाज़ी जा चुकीं हैं.और हाँ एक ख़ास बात जो उनकी वैबसाइट पर न हों...वीर शिवाजी पर एकाग्र संगीत नाटक में संगीतकार सी.रामचंद्र के लिये गा चुकीं हैं. एक ग़ज़ल कम्पोज़िशन का ट्रेक जो संगीतकार मदनमोहन जी द्वार तैयार था जिस पर शब्द - रेकॉर्ड न हो सके थे.आकाशवाणी इन्दौर द्वारा मदन जी पर तैयार किये गए एक कार्यक्रम में उस ट्रेक पर भी आवाज़ दे चुकीं हैं कल्पनाजी यानी एक तरह से मदनमोहन (मदनजी और अनिल विश्वास तो क्या ख़ूब गातीं हैं वे)के लिये भी गाया है उन्होंने.

बस एक ही बात है...जो कल्पनाजी के पास नहीं,किसी बड़े शहर की ऐसी पृष्ठभूमि नहीं जहाँ से आज के ज़्यादातर कलाकार आ रहे हैं और सादगी और गरिमा की प्रतिमूर्ति मेरी इस सुरीली बहन को नये ज़माने के मंचीय गिमिक्स नहीं आते ...लेकिन सिध्दु दा मुझे कल्पना दीदी के तप,पिता-गुरू के शुभाशीष और परमात्मा पर भरोसा है...बस तारीख़ नहीं बता सकता लेकिन ये होगा कि हम किसी अख़बार में पढ़े...देश की ख्यात गायिका कल्पना झोकरकर ने जमा दिया गायकी का रंग.