शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

यह अच्छी बात नहीं है कि किताबें बुकशेल्फ़ में बैठी रहें

वेरा पावलोवा (जन्म : १९६३) की कुछ कवितायें आप पहले 'कर्मनाशा' , 'कबाड़ख़ाना' व 'प्रतिभा की दुनिया' के ब्लॉग पन्नों पर पढ़ चुके हैं। उनकी कविताओं के मेरे द्वारा किए गए कुछ अनुवाद पिछले दिनों पत्र - पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए हैं । रूसी कविता की इस सशक्त हस्ताक्षर ने छोटी - छोटी बातों और नितान्त मामूली समझे जाने वाले जीवन प्रसंगों को  लघु काव्य - कलेवर में उठाने - सहेजने व संप्रेषित करने की जो महारत हासिल की है वह सहज ही आकर्षित करती है। संसार की बहुत सी भाषाओं में उनके कविता कर्म का अनुवाद हो चुका है जिनमें से स्टेवेन सेम्योर द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद 'इफ़ देयर इज समथिंग टु डिजायर : वन हंड्रेड पोएम्स' की ख्याति सबसे अधिक है। यही संकलन हमारी - उनकी जान - पहचान का एक माध्यम भी है। स्टेवेन, वेरा के पति हैं और उनकी कविताओं के ( वेरा के ही शब्दों में कहें तो ) 'सबसे सच्चे पाठक' भी। अनुवाद प्रक्रिया के बारे में अपने एक साक्षात्कार में वेरा पावलोवा क्या खूब कहती हैं - A good translation is a happy marriage of two languages, and it is just as rare as happy marriages are. ...और... a good translation is the same dream seen by two different sleepers. उनकी कवितायें कलेवर में बहुत छोटी हैं। उनमें कोई बहुत बड़ी बातें भी नहीं हैं । उनकी कविताओं में दैनंदिन जीवनानुभवों की असमाप्य कड़ियाँ हैं जो एक ओर तो दैहिकता के स्थूल स्पर्श के बहुत निकट तक चली जाती हैं और दूसरी ओर उनमें इसी निकटता के सहउत्पाद के रूप में उपजने वाली रोजमर्रा की निराशा और निरर्थकता भी है। उनकी कविताओं को ' स्त्री कविता' का नाम भी दिया जाता है लेकिन वह मात्र इसी दायरे में कैद भी नहीं की जा सकती है। कविताओं पर और बात फिर होगी ..आइए, आज और अभी पढ़ते हैं वेरा पावलोवा का गद्य जो 'पोएट्री' पत्रिका के अप्रेल २०१२ के अंक में 'हेवन इज नाट वर्बोस' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। उनकी कविताओं के लघु कलेवर की तरह उनका यह गद्य भी सूक्ष्म, सूक्तिमय और कुछ सीधा - सपाट और कुछ - कुछ गूढ़ रहस्यम है। यह एक तरह से कवि की दुनिया बाह्य और आभ्यंतर जगत की खिड़कियाँ खोलने का एक उपक्रम तो है ही इसके माध्यम से हम कविता कवि के आपसी तंतुजाल के रेशे भी उधेड़कर देख  - निरख सकते हैं। प्रस्तुत हैं हमारे समय की एक जरूरी कवि के गद्य के कुछ चुनिंदा अंश


कवि का गद्य : वेरा पावलोवा 
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

०१- एक उम्रदराज कवि ने मुझसे कहा : 'मैं दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री हूँ' ;  ऐसा इसलिए कहा कि वह मेरा नाम याद नहीं कर पा रहा था।

०२-  कभी - कभी कुछ ऐसे क्षण आते हैं जब मुझे अनुभव होता है कि ब्रह्मांड फैल रहा है।

०३- लकड़ी के एक टुकड़े को नदी में बहते हुए पकड़ो और उस पर लगातार ध्यान रखते हुए चौकस नजरों से उसका पीछा करो, लेकिन धार का अतिक्रमण मत करो। यह एक तरीका है जिस तरीके से कविता को पढ़ा जाना चाहिए; हर पंक्ति , हर हिस्से को।

०४-  मुख में एक बनती हुई कविता धरे  मैं बिस्तर पर सोने चली गई।  नहीं , मैं नहीं दे सकती इस वक्त चुंबन।

०५-  युरी गगारिन :  अंतरिक्ष में जाने वाला पहला अदमी। उसके नाम के बाद वाले हिस्से का संबंध एक ऐसे  रूसी पक्षी 'गगोरा' से है जो उड़  पाने में सक्षम नहीं।

०६- जो लोग मेरी कविता को समझ नहीं पाते उनके बारे में मैं क्या सोचती हूँ? मैं समझ सकती हूँ।

०७- मेरी नब्बे साल की नानी कम सुनती है। जब उसने मेरे बारे में एक समाचार सुना तो कहा  : "अगर वे हमारी वेरा को कोई पुरस्कार दे सकते हैं तो समझ लो कि आजकल कैसी फालतू कविता लिखी जा रही है।"

०८-  मशहूर होने का मतलब यह है कि आप उनके बारे  में नहीं जानते जो आपके बारे में जानते हैं और यह भी  कि आप यह भी नहीं जानते कि वे आपके बारे में क्या जानते हैं।

०९- अन्ना अख़्मातोवा के आखिरी चिकित्सक का संस्मरण :  उसकी मृत्यु उसी क्षण हुई जब कार्डियोग्राम रिकार्ड किया जा रहा था। उसकी मृत्यु एक सीधी लकीर के रूप में दर्ज हो गई। बन गया एक रुलदार कागज। चलो अब कविता लिखो इस कागज पर।

१०-  कविता  तब शुरू होती है जब मात्र पाठक ही नहीं स्वयं कवि भी यह विचार करने लगे कि सचमुच यह कविता है भी?

११- यह अच्छी बात नहीं है कि किताबें बुकशेल्फ़ में बैठी रहें। मैं उन्हें अपने बिछावन पर पर पसर जाने देती हूँ ताकि मेरी कविताओं को महसूस हो कि वे निष्प्राण नहीं हैं।

१२- मेरी कुछ कवितायें हथेली पर समा सकती हैं और ज्यादातर तो ऐसी हैं कि  किसी बच्चे की हथेली पर।

१३-  मेरे हृदय में खुशियों के लिए बहुत जगह है और मैं जिस ओर भी देखती हूँ मुझे अपनी अनलिखी किताबों के उद्धरण दिखाई देते हैं।

१४- कविता में किसी शब्द का अर्थ वैसा ही नहीं होता जैसा कि वह शब्दकोश में दिखाई देता है क्योंकि कविता में  या तो उसका अर्थ एकदम उलट होता है या फिर  वैसा ही लेकिन हजारगुना संक्षिप्त।

१५- - क्या तुम समझते हो कि समझना असंभव है?
       - हाँ, मैं समझता हूँ।

१६- मैंने खुद से सवाल किया : क्या मैं कैलेंडर को पीछे छोड़ आई? मैंने  इस साल लिखी अपनी कविताओं की गणना की  वे ३६६ निकलीं।

१७-  अपनी कविताओं को उपहार में देकर मैं  अपना भौगोलिक क्षेत्र निर्मित करती हूँ।

१८-  मैं अपनी कविताओं में  शब्दों को उसी जतन से सहेजती हूँ जैसे कि विदेश यात्रा के समय सूटकेस का सहेजना होता है। ऐसे समय  पर मैं सबसे जरूरी , सबसे खूबसूरत, सबसे हल्की और सबसे कसी हुई चीजें सहेजती हूँ।

१९-  गुनगुने बाथटब में लेटकर मैं कविता की एक अकेली पंक्ति पकड़ने की कोशिश करती  हूँ और यदि वह मिल जाए तो मेरी रीढ़ में एक सिहरन - सी दौड़ जाती है।

२०-  मेरी डायरियाँ मेरे विगत स्व से आगत स्व को लिखी चिठ्ठियाँ हैं । मेरी कवितायें इन चिठ्ठियों के जवाब हैं।

२१-  - अरे, ये सब क्या हैं जो तुमने अपने शौचालय में टाँग रखा है?
      - ये मुझे मिले पुरस्कार हैं।
      -  तुम आजीविका के लिए क्या करती हो?
      - मैं एक कवि हूँ।
इसके बाद हम दोनो अपने - अपने काम में लग गए : प्लंबर कमोड ठीक करने में मशगूल हो गया और मैं     अपनी कविताओं कॊ साफ अक्षरों में नई कापी में उतारने लग गई।

२२- एक दिन सपने में पुश्किन ने मुझसे कहा : " मेरे लेखन के तीन स्रोत हैं ग्रामोफोन, मेढ़क और बुलबुल।"

२३-  अगर कवितायें बच्चे हैं तो कविता पाठ  अभिभवक शिक्षक संघ की बैठक है।

२४- एक युवा कवि के पत्र से : " जब मुझे अच्छा नहीं लगता मैं तब लिखता हूँ ।जब मुझे अच्छा लगता है तब मैं लिख नहीं पाता।" मेरे साथ कुछ अलग है कुछ उलट : जब मैं लिखती हूँ तब मुझे अच्छा लगता है और जब मैं नहीं लिख पाती हूँ तब मुझे बहुत बुरा लगता है।

२५- सचमुच सुंदर वे लोग हैं जिन्हें कुरूपता से डर नहीं लगता। यह बात कविताओं के सच पर भी लागू होती है।

12 टिप्‍पणियां:

Reenu Talwar ने कहा…

Wah! Bahut Badhiya!

Kavita Vachaknavee ने कहा…

कैसी सच्ची व खरी अभिव्यक्तियाँ है !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, बहुत ही सुन्दर..

Unknown ने कहा…

लाजवाब हैं भाई... इतनी सुंदर कविताएं पढ़वाने के लिए धन्‍यवाद।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक अनुवाद!

पारुल "पुखराज" ने कहा…

behtreen post ..aabhaar

Pratibha Katiyar ने कहा…

दिन बना दिया आपने सिद्धेश्वर जी। और क्या कहूं...

saroj ने कहा…

वाह गुरु जी ,आनंद आ गया ,सुन्दर अभिव्यक्तियों का सुन्दर अनुवाद !!

addictionofcinema ने कहा…

Gazzab Siddheshwar ji, kamal ki kavitayen hain sootra vakya ki tarah

सुशीला पुरी ने कहा…

'मुख में एक बनती हुई कविता धरे मैं बिस्तर पर सोने चली गई। नहीं , मैं नहीं दे सकती इस वक्त चुंबन।'....!!!

dr.mahendrag ने कहा…

bahut sundar prastuti,is hetu aabhar