बहुत दिन हुए ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं - कुछ साझा नहीं किया। कुछ व्यस्तता , कुछ मौज, कुछ आलस्य और कुछ बस्स एवें ही। रुटीन आजकल लगभग बँधा - बँधाया है। तीन बजे के आसपास लौटकर लंच का समय लगभ बीत जाने पर लंचन। उसके बाद दोपहर आया हुआ अंग्रेजी का अख़बार उलटते - पुलटते हुए एक झपकी और उठकर चाय - शाय के साथ कुछ देर पढ़न+ टीवी दर्शन+कंप्य़ूटर पर खटरम - पटरम। इस शगल में कभी कभी साँझ भी घिर आती है तब याद आता है कि चलो थोड़ा घूम आयें। आज भी कुछ इसी क्रम में शाम को यह लिखा गया - कवितानुमा कुछ - कुछ। आइए इसे देखते पढ़ते हैं.....
साँझ की सीख
साँझ हुई अब घर से निकलो
बंद करो जी यह कंप्यूटर
रुकी है बारिश बड़ी देर से
बोल रहे हैं मेंढक टर - टर
गली में ठेला ले आया है
भुट्टे वाला भैया
नाबदान -नाली में बच्चे
चला रहे कागज की नैया
गमक पकौड़ी की नथुनों तक
चली आ रही बिना बुलाए
बाहर निकलो खोज खबर लो
किसने क्या पकवान बनाए
इन्द्रधनुष शायद उग आए
बरस चुका है अच्छा पानी
खेतों का रंग बदल चुका है
धान हुआ है और भी धानी
बाहर कितना दृश्य सुहावन
घर से निकलो बाबू साहब
हवा बतास लगने दो तन को
अब तो बदलो अपना छब - ढब
9 टिप्पणियां:
स्वागत है |
जय श्री कृष्ण ||
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (11-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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♥ !! जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !! ♥
बहुत खूब!!
बदल लेंगे अपने अपने छब और टब
बाहर भी निकलेंगे पर पता नहीं कब ?
बहुत खूब!
चकाचक कविता है। मजे आ गये बांचकर!
शानदार, मजा आ गया। कागज की नैया नाली में, गली में भुट्टे का ठेला और पकौड़ी की गंध नथुनों में। ज़िंदगी के रंगों का मज्जा पर कंप्यूटर बंद करके।
bachpan ki barish ki yad dilati kavita..
वाह, मजेदार कविता
dhoop me nikalo ghaTaao^ me nahaa kar dekho...... mai^ to chalaa !!
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिये :)
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