जी करता है जी भर रोऊँ आज की रात।
तकिए में कुछ आँसू बोऊँ आज की रात।
एक जमाना बीत गया जागे - जागे,
तेरी यादों के संग सोऊँ आज की रात।
वह एक समय था। वह एक जगह थी। वह एक उम्र थी। तब सब कुछ अपनी ही तरह का था अपना , अपने जैसा या वैसा महसूस करना जैसा कि मन माफिक होना चाहिए। उस वक़्त मैं बी०ए० फ़ाइनल ईयर का छात्र था। पढ़ने का शौक गाँव - घर से ही था और बर्फ़ , बदल बारिश के इस पहाड़ी शहर नैनीताल में आकर पढ़त- लिख़त का शौक और बढ़ रहा था। इसमें दुर्गालाल साह नगरपालिका पुस्तकालय का बहुत बड़ा योगदान था। तब वहाँ खूब किताबें - पत्रिकायें आती थीं और खूब रौनक रहती थी। लाईब्रेरी की खिड़की से झील के उस पार ठंडी सड़क, पाषाण देवी मंदिर , अपना डीएसबी कैम्पस दिखाई देता था। इसी दौरान गुलज़ार की किताब 'कुछ और नज़्में' ईशू करवाई , पढ़ी । दिल के बेहद करीब लगी थीं इसकी रचनायें। यह गुलज़ार के कृतित्व से पहला - सा परिचय था। बाद में तो उनके और भी ढेर सारे रूपों से परिचित हुआ । यह सब बात की बात है लेकिन 'कुछ और नज़्में' के दौर वाली बात ही कुछ और थी क्योंकि वह एक समय था। वह एक जगह थी। वह एक उम्र थी।
समय
पाँवों के पास बैठकर
कुनमुनाना चाहता है।
बहुत व्यग्र है
कुछ सुनाना चाहता है।
यह उसी समय की बात है । तब अक्सर कवितायें लिखता था और चुपचाप डायरी में सहेज लेता था। सुनाने _ छपवाने को लेकर संकोच था , यह अब भी है।उसी समय किसी दिन गुलज़ार की नज़्में शीर्षक एक कविता लिखी थी जो गुलज़ार की त्रिवेणियों और नज़्मों के प्रसंग, प्रवाह व प्रभाव में आकर नवंबर की एक सर्द रात के एकांत में बस यूँ ही लिखी - सी गई थी जो कि पुरानी डायरी में अब भी दर्ज़ है और गाहे - ब- गाहे स्मृति सरोवर में स्नान का न्यौता देता रहती है।
समय
पाँवों के पास बैठकर
कुनमुनाना चाहता है।
बहुत व्यग्र है
कुछ सुनाना चाहता है।
यह उसी समय की बात है । तब अक्सर कवितायें लिखता था और चुपचाप डायरी में सहेज लेता था। सुनाने _ छपवाने को लेकर संकोच था , यह अब भी है।उसी समय किसी दिन गुलज़ार की नज़्में शीर्षक एक कविता लिखी थी जो गुलज़ार की त्रिवेणियों और नज़्मों के प्रसंग, प्रवाह व प्रभाव में आकर नवंबर की एक सर्द रात के एकांत में बस यूँ ही लिखी - सी गई थी जो कि पुरानी डायरी में अब भी दर्ज़ है और गाहे - ब- गाहे स्मृति सरोवर में स्नान का न्यौता देता रहती है।
आज (भी ) कुछ ऐसा ही हुआ। डायरी से गुफ़्तगू हुई और यादों के अधमुँदे दरीचे खुले। हवा का एक पुराना झोका आया और 'दिल को कई कहानियाँ - सी याद आके रह गईं।
वादियों में कोई संगीत - सा सपना तो मिले।
और कुछ भी नहीं उम्मीद का झरना तो मिले।
दिल तो हर वक़्त तेरे साथ - साथ होता है,
सोचता हूँ कभी कम्बख़्त यह तन्हा तो मिले।
आज कई मित्रों से पता चला ; इसे पता चलना कहेंगे या किसी भूली हुई चीज का याद आ जाना ; खैर जो भी हो आज पता चला कि हमारे समय के बहुमुखी - बहुआयामी व्यक्तित्व के रचनाकार गुलज़ार का जन्मदिन है। उन्काहें बधाई - शुभकामनयें! कामना है कि वे स्वस्थ रहें , सक्रिय रहे दीर्घायु हों और अपने शब्द , स्वर व सिनेमाई कौशल के नायाब नमूने लेकर निरंतर सामने आते रहें। आज ढेर सारे 'गुलजारियंस' के साथ अपनी उस पुरानी कविता 'गुलज़ार की नज़्में ' को साझा करने का मन है जो आज से बहुत साल पहले किसी समय , किसी जगह लिखी गई थी जिसके लिए आज भी ' दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रत- दिन।'। बहरहाल , आइए , इसे देखें - पढें और आज के इस क्रूर - कठिन समय में किसी समय किताबों - कविताओं के जरिए दिल में जज्ब अपने भीतर की तरलता - सरलता को पुचकारने के लिए कुछ देर , कुछ दूर आगे बढ़ें :
गुलज़ार की नज़्में
मैंने
गुलज़ार की नज़्मों को सारी रात जगाए रक्खा
और एक खुशनुमा अहसास
मेरे इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा..।
संगतराशों के गाँव की मासूम हवा
मरमरी बुतों के पाँव पूजती रही
स्याह आंगन में
मोतियों की बारात उतरी थी
और हसीन मौसम का सारा दर्द
खिड़की के शीशों पर तैर आया था...।
इन सबके बावजूद
बन्द कमरे में
मैं था
मेरे सामने गुलज़ार की नज़्में थीं
और अँधियारे में उगता हुआ सूरज था....।
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11 टिप्पणियां:
बहुत खूब. किताबें एक लड़के को आदमी में किस तरह बदल देतीं हैं, बिना समय के धक्के खाए!
जी करता है जी भर रोऊँ आज की रात।
तकिए में कुछ आँसू बोऊँ आज की रात
"गुलज़ारियंस" के भोले दिनों के ख़ुदा रहे गुलज़ार :)
शुभकामनायें ||
इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .
गुलज़ार ऐसे ही गुलज़ार रहें प्रशंसकों के दिलो दिमाग में -बधाई और शुभकामनाएं!
बहुत खूब!
ईद मुबारक !
आप सभी को भाईचारे के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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इस मुबारक मौके पर आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ईद मुबारक,बहुत बढ़िया प्रस्तुति ... हार्दिक शुभकामनाएँ!
गुलज़ार एक संस्था हैं...भारत की आधुनिक शायरी की...
तुम जिओ हजारों साल...साल के दिन हों पचास हज़ार...
बेहद सुन्दर कविता
बढ़िया प्रस्तुति .... गुलज़ार के जन्मदिन पर शुभकामनायें
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