सादर- हुक्का-पानी बंद की, चिंता रही सताय ।डाक्टर साहब इसलिए , रहे हमें भरमाय । रहे हमें भरमाय, नदी के तीर जमे हैं ।प्राकृतिक परिदृश्य, मजे से मस्त रमे हैं ।एक मास का समय, दिया रविकर ने पक्का ।सीधे हों सिद्धेश, नहीं तो छीनें हुक्का ।।
वाह, आनन्द है..
छुट्टी? -गोया आप यहीं रहते हो !
सलाम !
वाह, आपकी मस्ती देखकर खलल डालने का किसका मन होगा?
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5 टिप्पणियां:
सादर-
हुक्का-पानी बंद की, चिंता रही सताय ।
डाक्टर साहब इसलिए , रहे हमें भरमाय ।
रहे हमें भरमाय, नदी के तीर जमे हैं ।
प्राकृतिक परिदृश्य, मजे से मस्त रमे हैं ।
एक मास का समय, दिया रविकर ने पक्का ।
सीधे हों सिद्धेश, नहीं तो छीनें हुक्का ।।
वाह, आनन्द है..
छुट्टी? -गोया आप यहीं रहते हो !
सलाम !
वाह, आपकी मस्ती देखकर खलल डालने का किसका मन होगा?
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