तमाम फेसबुकिया मित्रों से क्षमा सहित और इसी दुनिया के यायावरों के लिए आदर और प्यार के साथ एक अतुकान्त तुक..
फेसबुककी-बोर्ड की काया पर
अनवरत - अहर्निश
टिक - टिक टुक- टुक।
खुलती - सी है इक दुनिया
कुछ दौड़ - भाग
कुछ थम - थम रुक- रुक।
उनींदेपन की
पटरियों पर रेंगते
किसी भाप इंजन की
छक - छक छुक - छुक।
एक दिल है बेचारा
मुहब्बत का मारा
फिर भी
धड़कता है
धीरे - धीरे
धुक - धुक।
अपनी मौज में है
सारा संसार
इत - उत दिखता - छिपता है
दु:ख में सुख- सुख
सुख में दु:ख - दु:ख।
गोया कोई तुक बे-तुक।
8 टिप्पणियां:
पर लय सच में गज़ब की है,
न खटका था कुछ।
वाह ..बहुत खूब... फेस बुक पर सुन्दर लिखा..वाह...
ye bhi khoob rahi!
बहुत सुन्दर तस्वीर है सिद्धेश्वर भाई ;-)
गज़ब की लय है सिद्धेश्वर भाई !
बहुत सुन्दर ............ वाह
आज ४ फरवरी को आपकी यह सुन्दर भावमयी पोस्ट चर्चामंच पर है... आपका आभार ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.html
न्यू मीडिया के समक्ष
सरकार
झुक झुक झक झक
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