** यह जानकर प्रसन्नता है कि मेरे लिखे - पढ़े - कहे को पसंद किया गया है। इस पोस्ट को ( और 'कर्मनाशा' की परिचयात्मक टिप्पणी व कविता को भी) अब अर्चना चावजी के सधे स्वर में सुना जा सकता है। बहुत - बहुत आभार, धन्यवाद..अर्चना जी ! साथ ही हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया में अध्ययन और अभिव्यक्ति की साझेदारी की दिशा के एक लघु प्रयास के रूप में जारी इस ठिकाने के सभी विजिटर्स को शुक्रिया ! !
आज और अभी इस रात में 'रात' के सिलसिले की कुछ अपनी - सी बातें, कुछ खोए हुए -से सामान की तलाश, कुछ संवाद - एकालाप या कि शब्द पाखियों की उड़ान , कुछ कवितायें... अब जो भी समझा जाय। आइए ,देखें..पढ़े..साथ चलें ..कुछ आगे बढ़े....
एक रात : तीन बात
रात : ०१
यह रात है
रात : एक शब्द...
'र' पर 'आ' की मात्रा और 'त'
शब्दकोशों में मिल जायेंगे
इसके तमाम पर्याय व विपर्यय।
अगर चाहें
तो बहुत सपाट तरीके से
इसे कहा जा सकता है
दिवस का अवसान
या फिर संध्या का व्यतीत।
यह रात है:
तम
तमस
अंधकार...
अथवा रोशनी के प्रयत्न का एक प्रमाण।
रात : ०२
यह रात है:
एक काली स्लेट
इसी पर लिखी जानी है
रोशनी की तहरीर।
यह रात है:
नींद
स्वप्न
जागरण
और..
सुबह की उम्मीद।
रात : ०३
यह रात है:
इसी में दिखता है
कभी आधा
कभी पूरा
और कभी अदृश्य होता हुआ चाँद।
यह रात है:
इसी में डूबकर कह उठता हूँ:
'मुझे चाँद चाहिए'
और सहसा
क्षितिज पर उदित हो आता है
तुम्हारा चेहरा।
10 टिप्पणियां:
अद्भुत फ़ोटू.
बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट...रिकार्ड करने का मन है कोशिश करती हूं...
चाँद को बहुधा पृथ्वी पर इन्हीं बिम्बों के माध्यम से देखा जाता है।
आखिरी लाइनों ने जान ही ले ली बस.
यह रात है:
इसी में डूबकर कह उठता हूँ:
'मुझे चाँद चाहिए'
और सहसा
क्षितिज पर उदित हो आता है
तुम्हारा चेहरा।
... bahut badhiyaa ... behatreen !
आखिर वह रात है।
आपके ब्लॉग पर पॉडकास्ट को जगह देने के लिए आभार...
वाह.... बहुत अच्छी कविता, अर्चना जी का आभार !
रात...अपनी सी बात
दूसरा चाँद पसंद आया .....
एक टिप्पणी भेजें