मंगलवार, 6 जुलाई 2010

पत्तों पर ठिठका है जल


* आज दिन भर ठीकठाक बारिश हुई।धूप , तपन, लू  और गर्मी की जगह नमी , तरावट और आर्द्रता ने हथिया ली।जब बारिश हुई तो मन -मस्तिष्क के भीतर भी कुछ न कुछ बरसा है। खैर , सबको बारिश मुबारक ! हैप्पी बारिश ! अब इस गीले मौसम में यह कविता या कवितानुमा जो भी है ,जैसा भी बन पड़ा है - अनायास ..वह सबके सामने है:





बारिश : चार मन:स्थितियाँ

01-

कविता में क्या है-
शब्द ?
रूप ?
गंध ?

प्रकृति के कोरे कागज पर
बारिश लिख रही है छंद।

02-

बारिश आई
याद आई छतरी
याद आए तुम
याद आया घर।

ओह ! कितनी देर से
भटक रहा हूँ बाहर
इधर - उधर।

03-

 भीगा
नम हुई देह
आर्द्र हुआ मन।

बरसने को व्यग्र हैं
नभ में छाए घन सघन।

04-

पत्तों पर
ठिठका है जल।

वह भी देख रहा है
शायद तुम्हें
अपलक - एकटक - अविचल।

4 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

बारिशें लातीं हैं कितना कुछ साथ अपने

पत्तों पर
ठिठका है जल..

बहुत सुन्दर

शेखर मल्लिक ने कहा…

बारिश पर छोटी कवितायेँ, अच्छी हैं. गहरी अनुभूतियाँ...

संध्या आर्य ने कहा…

its pure..........

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब.

बारिश आई
याद आई छतरी
याद आए तुम
याद आया घर।

ओह ! कितनी देर से
भटक रहा हूँ बाहर
इधर - उधर।
...चारों कविताएँ लाज़वाब हैं.
..बधाई.