गुरुवार, 8 जुलाई 2010

महत्वहीन चीजों में व्यस्त रखता हूँ मैं स्वयं को


I write poetry.
I write poetry and buy old clothes.
I sell old clothes and buy music;
If I could also be a fish in a bottle of booze...

- Orhan Veli

तुर्की कवि ओरहान वेली (१९१४ - १९५०) की एक कविता का अनुवाद कल 'कबाड़ख़ाना' पर प्रस्तुत किया था और यह लिखा था कि कवि का परिचय और कुछ अन्य कवितायें शीघ्र ही.. आज इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए उनका परिचय देने के बजाय उचित यह लग रहा है कि क्यों न ओरहान की आत्मकथात्मक / आत्मपरिचयात्मक कविता 'मैं , ओरहान वेली' को हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया के बीच विश्व कविता के प्रेमियों के मध्य  साझा  किया जाय। एक तरह से यह ठीक लग रहा है कि उनके 'संक्षिप्त जीवन परिचय' के तंतुओं और रचना प्रक्रिया को इस कविता के माध्यम से समझते हुए एक कवि जिसने ३६ वर्षों का लघु जीवन जिया ,एकाधिक बार बड़ी दुर्घटनाओं का शिकार हुआ , कोमा में रहा और जब तक जिया सृजनात्मक लेखन व अनुवाद का खूब सारा काम किया , के काव्य संसार में उसके द्वारा दिए गए अंत:साक्ष्यों का सिरा थामकर चुपके से प्रविष्ट हुआ जाय व देखा जाय कि अपनी ही कविता की काया में एक कवि का अंतरंग व बहिरंग कैसा दिखाई देता है। तो लीजिए प्रस्तुत है यह कविता.....

मैं,ओरहान वेली
( तुर्की कवि ओरहान वेली की कविता / अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)


मैं,ओरहान वेली
प्रसिद्ध रचनाकार
'सुलेमान एफांदी को शान्ति मिले'शीर्षक कविता का।
सुना गया है कि सबको उत्सुकता है
मेरे निजी जीवन के बारे में जानकारी की।

अच्छा, तो मुझे कह लेने दो:
सबसे पहले तो यह कि मैं एक मनुष्य हूँ , सचमुच का
नहीं हूँ मैं; सर्कस का जानवर या ऐसा ही कुछ और
मेरी एक नाक है
कान भी हैं
हालांकि वे बहुत सुघड़ नहीं हैं।

मैं एक घर में रहता हूँ और कुछ कामधाम भी करता ही हूँ।
मैं अपने सिर पर बादलों की कतार लिए नहीं फिरता हूँ
न ही मेरी पीठ पर चस्पां है भविष्यवाचन का इश्तेहार
मैं इंगलैंड के राजा जार्ज की तरह नफासत वाला नहीं हूँ
और न ही अभिजात्य से भरा हूँ
सेलाल बायार के अस्तबल के हालिया मुखिया की भाँति।

मुझे पसंद है पालक
मैं दीवाना हूँ पफ़्ड चीज़ पेस्ट्रीज का
दुनियावी चीजों की मुझे चाह नहीं है
बिल्कुल नहीं दरकार।

ओकाते रिफात और मेली वेदे
ये हैं मेरे सबसे अच्छॆ दोस्त
मैं किसी से प्यार भी करता हूँ
बहुत ही सम्मानित है वह
लेकिन मैं बता नहीं सकता हूँ उसका नाम
चलो, साहित्य के आलोचकों को ही करने दो यह गुरुतर कार्य।

महत्वहीन चीजों में व्यस्त रखता हूँ मैं स्वयं को
बनाता रहता हूँ योजनायें
और क्या कहूँ?
शायद और भी हजारों आदतें हैं मेरी
लेकिन उनको सूचीबद्ध करने से क्या लाभ
वे सब मिलती जुलती हैं एक दूसरे से -
एक से होता है दूसरे का भान
और दूसरे से पहले का।
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1 टिप्पणी:

Rangnath Singh ने कहा…

बेहतरीन। बेहतरीन। बेहतरीन।