निज़ार क़ब्बानी की कुछ कवितायें 'कबाड़ख़ाना' पर प्रस्तुत कर चुका हूँ जिसे पसंद भी किया।गया'हरा कोना' वाले भाई भाई रवीन्द्र व्यास का इसरार था कि कि इस कवि की कुछ और कविताओं को प्रस्तुत किया किया, सो कुछ और अनुवाद इस बीच किए हैं जिनमें से दो कवितायें पेशा कर रहा हूँ। 'कर्मनाशा' पर अपने अनुवादों को लगाने का यह पहला प्रयास है , देखें पाठक क्या कहते हैं। निज़ार को मूलत: प्रेम और दैहिकता का कवि माना जाता है किन्तु उसमें कहीं से भी हल्कापन नहीं आ पाया है , उनके यहाँ अगर कुछ है तो प्रेम की उदात्तता और सौन्दर्य की जी भर तारीफ का एक अटूट सिलसिला...तो लीजिए अरब जगत के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवियों में से एक निज़ार क़ब्बानी (1923-1998) की दो कवितायें ( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह ) :
०१-जब मैं प्रेम करता हूँ
जब मैं प्रेम करता हूँ
तो अनुभव करता हूँ
कि सम्राट हूँ अपने समय का
मेरी अधीनता में है समूची पृथ्वी
इस पर विद्यमान तमाम चीजें
और मैं सूर्य की ओर दौड़ाए जा रहा हूँ अपना अश्व ।
जब मैं प्रेम करता हूँ
तो बन जाता हूँ तरल प्रकाश
असंभव है जिसे आँखों से देख पाना
और मिमोसा व पोस्त के पौधों में रूपायित हो जाती हैं
मेरी कविताओं की पांडुलिपियाँ ।
जब मैं प्रेम करता हूँ
तो उंगलियों से फूट निकलती है जलधार
मेरी जिह्वा पर उगने लगती है घास
जब मैं प्रेम करता हूँ
तो बन जाता हूँ समय के बाहर बहता हुआ समय ।
जब मैं करता हूँ
किसी स्त्री से प्रेम
तो नंगे पाँव दौड़े चले आते हैं
जंगल के तमाम पेड़॥ मेरी ही ओर।
०२- दीपक से अधिक मूल्यवान होता है प्रकाश
दीपक से अधिक मूल्यवान होता है प्रकाश
पांडुलिपियों से अधिक मूल्यवान होती हैं कवितायें
और अधरों से अधिक मूल्यवान होते हैं
उन पर रचे गए चुंबन ।
तुमसे ...
मुझसे...
हम दोनों से....
बहुत अधिक मूल्यवान हैं मेरे प्रेमपत्र ।
वे ही तो हैं वे दस्तावेज
जिनसे आने वाले समय में
जान पायेंगे लोगबाग
कि कैसा रहा होगा तुम्हारा सौन्दर्य
और कितना मूल्यवान रहा होगा मेरा पागलपन।
13 टिप्पणियां:
निज़ार क़ब्बानी की दोनों रचनाएँ-बहुत गहरी!! आभार इस प्रस्तुति का!
bahut khub.
निज़ार कम्बानी की
सुन्दर रचनाएँ पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
बहुत ही उम्दा रचना । लाजवाब अभिव्यक्ति
सुंदर.
बहुत शानदार काम कर रहे हो चच्चा. गहरे और सच्चे अनुवाद. आपसे गले मिलने को मन कर रहा है....मेरे प्यारे चच्चा.
अच्छी कविताएँ ...
पढ़ने का दायरा बढ़ रहा है
अनुवाद और आने चाहिए ...
आभार आपका
कब्बानी की पहले पोस्ट की गयी कविता भी पढ़ चुका हूँ... अभी भी प्रिंट आउट्स पास में है... सिलसिले को और आगे ले जाएँ... यहाँ दोनों जबरदस्त हैं .. दूसरी वाली ज्यादा ग्राह्य होगी...
दूसरी कविता तो बहुत ही खूबसूरत है भाई।
अनुवाद भी उसे सहज बना रहा। बधाई। कामयाबी आपके खाते में।
अनुवाद उम्दा था.... दूसरी कविता ने अधिक स्पर्श किया मन को...!
kitna mulyawan raha hoga mera pagal pan
Bahut khoobsoorat Ji.
Sukhdev.
आजकल हर रात सोने से पहले आपके इस ब्लौग को अपने मोबाईल में पढ़ते हुये बीतता है भाई साहब.. :)
दूसरी वाली बहुत पसंद आई..
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