रामगढ़ ( जिला : नैनीताल ) उत्तराखंड महादेवी वर्मा सृजन पीठ में आयोजित 'हिन्दी कहानी और कविता पर अंतरंग बातचीत' के दो दिवसीय आयोजन ( ३० एवं ३१ अक्टूबर २००९ ) से लौटा हूँ वहाँ के प्रवास में खूब चहल-पहल रही फिर भी इसी में अपने लिए तनिक एकान्त तलाशते हुए कुछ कवितायें बन गईं जिनमें से दो प्रस्तुत हैं -
रामगढ़ से हिमालय : दो चित्र
१-
पहाड़ों के माथे पर
बर्फ की सफेदी है
और मेरे बालों में
उतर रहा है
बीतते जाते वक्त का उजलापन।
अडिग
अचल
खड़ा है नगाधिराज...
मैं ही क्यों होता रहता हूँ
प्रतिकूलताओं से दोलायमान।
थोड़ी - सी हिम्मत मुझे भी बख्शो
मेरे हिमालय !
मेरे हिमवान ! !
२-
तिरछी ढ्लानों पर
सीधे तने खड़े हैं देवदार
आकाश के नीले कैनवस पर
कुछ लिखना चाहती हैं
उनकी नुकीली फुनगियाँ..
यह हिमालय है
हिम का घर
यहाँ कौन नहीं है कवि
कौन नहीं बनना चाहता है चित्रकार !
*******
पहाड़ों के माथे पर
बर्फ की सफेदी है
और मेरे बालों में
उतर रहा है
बीतते जाते वक्त का उजलापन।
अडिग
अचल
खड़ा है नगाधिराज...
मैं ही क्यों होता रहता हूँ
प्रतिकूलताओं से दोलायमान।
थोड़ी - सी हिम्मत मुझे भी बख्शो
मेरे हिमालय !
मेरे हिमवान ! !
२-
तिरछी ढ्लानों पर
सीधे तने खड़े हैं देवदार
आकाश के नीले कैनवस पर
कुछ लिखना चाहती हैं
उनकी नुकीली फुनगियाँ..
यह हिमालय है
हिम का घर
यहाँ कौन नहीं है कवि
कौन नहीं बनना चाहता है चित्रकार !
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( रामगढ़ पर कुछ यहाँ भी है। मन करे तो देख लें )
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
यह हिमालय है
हिम का घर
यहाँ कौन नहीं है कवि
कौन नहीं बनना चाहता है चित्रकार
वाह!! दोनों रचनाएँ उम्दा!! बधाई.
इन पर्वतों ने रच दिए है देवदार से ऊंचे कई चरित्र।
बहुत सुंदर।
sundar .
हिमालय पर आपने तो
अद्भुत कविताओं की रचना कर दी।
बधाई!
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