हम
साथ- साथ।
साथ- साथ।
तुम मुखर
मैं मौन ।
पूछ रहा हूं स्वयं से-
तुम कौन ?
मैं कौन ?
२.
सुख कहाँ है ?
किस ओर पसरा है दु:ख ?
किसको भरमा रहा हूँ
इतनी देर से.
निरख रहा हूँ दर्पण में
अपना ही मुख !
३.
भाषा किसे किसे कहते है
किसे कहते हैं
बातचीत - संवाद - वार्तालाप.
कौन उलझे इन सवालों से
कौन मोल ले जी का जंजाल.
आओ बारिश को सुनें
भीग जाए वर्णमाला तो भीग जाए
अपनत्व की आँच में
चलता रहे एकालाप।
४.
रात
खुद से कर रही है बात.
शब्दों की बिसात पर
खुद को ही शह खुद से ही मात.
कौन है
जो नींद को जगाए हुए है ?
कौन है
जो आधी रात को कह रहा है शुभ प्रभात !
खुद से कर रही है बात.
शब्दों की बिसात पर
खुद को ही शह खुद से ही मात.
कौन है
जो नींद को जगाए हुए है ?
कौन है
जो आधी रात को कह रहा है शुभ प्रभात !
7 टिप्पणियां:
यह मौन-मुखरता कितना कुछ कहवा देती है न!
सुन्दर स्वगत । आभार ।
बहुत बेहतरीन..भावपूर्ण. अच्छा लगा पढ़कर.
कौन है
जो नींद को जगाए हुए है ?
कौन है
जो आधी रात को कह रहा है शुभ प्रभात !..waah...
किसको भरमा रहा हूँ
इतनी देर से.itni samajh aa jaye to na dukh rahe na aas....
आओ बारिश को सुनें
भीग जाए वर्णमाला तो भीग जाए
अपनत्व की आँच में
चलता रहे एकालाप।
शब्दों की बिसात पर
खुद को ही शह खुद से ही मात.
बेहतरीन. बेहद खूबसूरत रचनाएं.
हम
साथ- साथ।
तुम मुखर मैं मौन ।
पूछ रहा हूं स्वयं से-
तुम कौन ?मैं कौन ?
कौन है
जो नींद को जगाए हुए है ?
कौन है
जो आधी रात को कह रहा है शुभ प्रभात !
pratikriyaoN se pare ....
"हम
साथ- साथ।
तुम मुखर मैं मौन ।
पूछ रहा हूं स्वयं से-
तुम कौन ?
मैं कौन ?"
चारों शब्द-चित्रों में आपने बहुत
खूबसूरती से शब्दों के मोती टाँक दिये हैं।
बहुत आभार!
आओ बारिश को सुनें
भीग जाए वर्णमाला तो भीग जाए
अपनत्व की आँच में
चलता रहे एकालाप।
मौन ,मुखर, भाषा ,संवाद और शब्दों से परे गहरे में उतर जाने का सुखद एहसास कराती हैं ये क्षणिकाएं ! बहुत खूब सिद्धेश्वर जी !
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