सोमवार, 10 अगस्त 2009

कामना को कल्पना के फूल चुनते दो



पुरानी डायरी से नए सिरे से बतियाना अच्छा लगता है. आज सुबह - सुबह पुरानेपने में कुछ नया तलाश करने की मंशा से डायरी पलटी और लगा कि इस कविता को 'कर्मनाशा' पर शेयर करना चाहिए. सो फिलहाल और कोई लिखत -पढ़त नहीं आइए देखते हैं यह कविता -

कामना को कल्पना के फूल चुनते दो.

देखो मत रोको शपथ की आड़ लेकर-
शब्द को साँसों की लय पर गीत बुनने दो.

कौन जाने
क्या हुआ है आजकल.
उग रही है
उम्र की अभिनव फसल.

चलने दो जादू प्रबल आकर्षणों का,
मन को मन का अनसुना संगीत सुनने दो.

आँधियों को
दो बुलावा साथ मेरे.
ताकि टूटें
अजनबी रिश्तों के घेरे.

एक नई वरमाला के निर्माण ह्वेतु,
कामना को कल्पना के फूल चुनते दो.

(एक निवेदन : मेरी एक छोटी -सी गलती या कि प्रयोग करने की फितरत के चलते इस ब्लाग पर पोस्ट्स के साथ लगी सभी तस्वीरें डिलीट हो गई हैं . पाठको को हुई / हो रही असुविधा के लिए क्षमा चाहता हूँ .)

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

चिन्ता न करें..गल्ती करना हमारा धर्म है/


बेहतरीन!

वाणी गीत ने कहा…

बहुत बढ़िया ..!!

मुनीश ( munish ) ने कहा…

very well said , vaah ! However, i can still see all the pictures intact , i think itz some misunderstanding.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रच्ना है बधाई।

डॉ .अनुराग ने कहा…

दिलचस्प....डायरी के कुछ ओर पन्ने पलटिये .....

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

आँधियों को
दो बुलावा साथ मेरे.
ताकि टूटें
अजनबी रिश्तों के घेरे.

एक नई वरमाला के निर्माण ह्वेतु,
कामना को कल्पना के फूल चुनते दो.

bahut hi sundar

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

एक नई वरमाल के निर्माण ह्वेतु,
कामना को कल्पना के फूल चुनते दो.

इस मखमली पोस्ट के लिए
बधाई।

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

चलने दो जादू प्रबल आकर्षणों का,
मन को मन का अनसुना संगीत सुनने दो.
डायरी के इन पुराने पन्नों में बिना कुछ नया तलाश किये सब कुछ पोस्ट करते जांय सिद्धेश्वर जी ,जस का तस ! रचना सुन्दर है !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।