बुधवार, 3 जून 2009

कद्दू की बेल पर तितली का खेल

बदल रही दुनिया बदल रहा संसार।
कीट - पतंगों ने भी बदला घरद्वार।
नई - नई चीजों से नया - नया मेल ।
अद्भुत - अपूर्व है प्रकृति का खेल ।
तितली रानी क्या बदल गया स्वाद?
फूल छोड़ कद्दू की आ गई याद !
गर्मी बहुत है रानी छाँह में जुड़ा लो।
भूख अगर लग जाए पत्तों को खा लो।
बुरा तो नहीं माना खींच लिया चित्र।
तू मेरी दोस्त प्यारी मैं तेरा मित्र ।
यूं ही आती रहो भाता है संग ।
भरती रहो सबके जीवन में रंग ।

6 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ACHARYA RAMESH SACHDEVA ने कहा…

WAH USTAD WAH

RAMESH SACHDEVA
hpsdabwali07@gmail.com

Manish Kumar ने कहा…

khoob aapne to is drishya par hi kavita bana lee.

मुनीश ( munish ) ने कहा…

sundar kavitt racha hai bhai , kahan mili tumko ye butter fly!

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

तितली पर अपूर्व,
अभिनव और अद्भुत कविता!

इस नवसृजन पर
मेरी बधाई स्वीकारें!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"तितली रानी क्या बदल गया स्वाद?
फूल छोड़ कद्दू की आ गई याद !"

कविता में कल्पना,
कल्पना में कविता।
बहुत सुन्दर।