गर्मियों के दिन हैं -लू , आँधी , अंधड़ , बवंडर वाले. सड़कों के किनारे लगे तरु - विटप -वृक्षों की कतार के बीच धूप में सीझते हुए गुलमुहर और अमलतास अलग से पहचाने जा रहे हैं. यह अव
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१-
गाड़ी क्रमांक : २५३५
लखनऊ से बिलासपुर - रायपुर
इधर दसहरी आम की डलिया
उधर धान का कटोरा भरपूर
यात्रा संपन्न हुई बेतरतीब
आते रहे विचार
कुछ अच्छे , कुछ सच्चे , कुछ झूठे ,कुछ अजीब
न कहीं रथ दिखा
न कहीं गरीब.
२-
दो दुनियाओं के बीच
पारदर्शी काँच की पतली कच्ची दीवार
इधर शान्त सुशीतल हवा
निरन्तर नियंत्रित तापमान
उधर धूल - धक्कड़ - अंधड़ - गुबार
फिर भी
दोनो ओर
हा - हाय - हाहाकार.
३-
जय हो !
बलिहारी ! !
क्या ग़ज़ब माया तुम्हारी -
न्यूनतम व्यय में
अधिकतम सुख की खरीददारी
जिसने भी उकेरी यह संकर संज्ञा
रखा यह कुछ भला - सा नाम
उसे नमस्ते
उस पर खीझ भरी रीझ
उसे सलाम.
४-
हमारे समय की
भाषा का
लगभग टटका तेवर
हिन्दी की नई चाल वाली बिन्दी की
चौंधभरी चंचल चमकार
अभिव्यक्ति के रीमिक्स का उदाहरण
कुछ अनूठा - तनिक लाजवाब
गोया आधी नींद - आधा जागरण
गोया आधी हकीकत - आधा ख़्वाब.
(चित्र गूगल सर्च से साभार / यात्रा के अनुभव की कुछ कड़ियाँ और ... क्रमश:....अगली पोस्ट में जारी )
10 टिप्पणियां:
हम्म्म दिलचस्प..आगे कि कड़ियों का इंतज़ार रहेगा।
भई बहुत सुन्दर! लौटिआए दिक्खो घर!
अति उत्तम....
नीरज
aapkaa andaaje bayan dilchasp hai...mujhe bhee aglee kadiyon kaa intjaar rahegaa...
इलाहाबाद से दिल्ली के लिये गरीब रथ जाती है वो भी देर रात, कभी यात्रा जरूर ही करेगे :)
सुन्दर बिम्ब। चौकस अंदाजे बयां।
सुन्दर रथ चित्रण के लिये आभार, आपके इस यात्रा के भिलाई पडाव में हम आपके साथ रहे, आपके यादों की खुशबू आज तक बरकरार है। आगे की कडियों का इंतजार रहेगा।
चारों शब्द-चित्र हकीकत बयान कर रहे हैं।
आपके यात्रा-अनुभव के
शब्द-चित्र
या कि
गरीब-रथ की झाँकियाँ!
बढियां शब्द चित्र हैं :-)
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