( अभी - अभी दो शेर ज़ेहन में उभरे हैं उम्मीद है कि शाम तक ग़ज़ल पूरी हो जाये, फिलहाल इतना ही... )
मुझे उर्दू नहीं आती उसे हिन्दी नहीं आती।
मगर क्या मान लें कि बात भी करनी नहीं आती।
सुबह की धूप में अब तीरगी का रंग शामिल है,
किसी अखबार में कोई ख़बर अच्छी नहीं आती.
1 टिप्पणी:
बात करने के लिए भाषा की जरुरत ही कहाँ होती है..केवल आँखें ही बहुत है..!
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