फूल खिलते रहेंगे दुनिया में ,
रोज़ निकलेगी बात फूलों की .
पिछले दिनों कौसानी में संपन्न 'पंत शैलेश स्मॄति' कार्यक्रम के हिन्दी कविता पाठ के कार्यक्रम में कविता पढ़ने से पहले कही गई अपनी बात में लीलाधर जगूड़ी जी ने कहा था कि जिस तरह पुराने जोगी नए जोगी को बहला कर अपने मठ में ले जाते हैं , वैसे ही ऐसा ही कुछ कवियों के साथ भी घटित होता है. आज इस बात का उल्लेख मात्र इसलिए कि आज मैं फ़ैज़ की एक ग़जल सुनवाने जा रहा हूँ और आलम यह है कि मख़दूम मोहिउद्दीन अपनी ओर खींचे लिए चले जा रहे हैं .याद तो होगा ही सागर सरहदी की फिल्म 'बाज़ार' ( १९८२ ) का वह अद्भुत गीत -
फिर छिड़ी रात बात फूलों की.
रात है या बारात फूलों की.
लेकिन आज वह ग़जल सुनते हैं जो मख़दूम मोहिउद्दीन की याद में फ़ैज़ ने लिखी है . मख़दूम की संदर्भित ग़ज़ल का क्या ही शानदार इस्तेमाल मुजफ़्फ़र अली ने अपनी फिल्म 'गमन' (१९७९) में किया है -
आपकी याद आती रही रात भर.
चश्मे -नम मुस्कुराती रही रात भर।
मुझे तो लगता है कि ये सब पुराने जोगी हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया के मुझ जैसे अन्यान्य नये चेलों को बहलाकर कविता -शायरी -संगीत - मौसीकी के एक ऐसे मठ में लिए चले जा रहे हैं जहाँ -
नजरें मिलती हैं जाम मिलते हैं ,
मिल रही है हयात फूलों की .
क्षमा करें दोस्त, अगर कुछ अवान्तर छिड़ गया तो । मख़दूम मोहिउद्दीन की याद में फ़ैज़ की लिखी ग़ज़ल सुनवाने की बात थी . सो अब वही सुनते हैं स्वर है आबिदा परवीन का :
आप की याद आती रही रात भर ,
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर।
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन ,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर ।
जो न आया उसे कोई जंजीरे - दर,
हर सदा पर बुलाती रही रात भर ।
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा,
इक तमन्ना सताती रही रात भर ।
13 टिप्पणियां:
क्या इत्तेफाक है सिद्धेश्वर भाई. आज ही बैठा मख्दूम को पढ़ रहा था कि आपने उनका ज़िक्र छेड़ दिया. सही कह रहे थे आप पिछली बार कि दिल से दिल को राह होती है.
फ़ैज की गजल सुनवाने/पढ़वाने का शुक्रिया.
बहुत आभार इस गज़ल को सुनवाने का.
मखूदम पर हमने पूरी श्रृंखला की थी रेडियोवाणी पर । वहां छाया गांगुली की आवाज़ में ये रचना लगाई गई थी । आप मखूदम के दीवाने हैं इसलिए ज़रा इस श्रृंखला पर नज़र फेरियेगा ।
ये रहा लिंक जो आपको उस श्रृंखला के बाक़ी गीतों तक ले जायेगा ।
बहुत बढ़िया ....द्रिवेदी जी के ब्लॉग से जो मूड बना यहाँ उसे ऊर मकाम मिला...
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन ,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर
jeena muhaal kiya kal se is ghazal ne..gina nahi kitni kitni baar suni gayi/har sher naye tareeqey se khulta rahaa/aur ye bhi abida ji ki gayki ka kamaal kehna ghalat nahi/ ..bahut bahut shukriyaa
जो न आया उसे कोई जंजीरे - दर,
हर सदा पर बुलाती रही रात भर ।
एस बेहतरीन गज़ल पढवाने और सुनवाने के लिए शुक्रिया।
कोई तस्वीर गाती रही रात भर।
बेहतरीन !
na poochhiye ki kitni pasand hai ye gazal ....lekin abida parveen ki awaz me pahali baar suna
pahale raat bhar aap ki yaad aati rahi suna tha...!
dhanyavaad
बड़ी खूबसूरती से मुट्ठी संजौई है आपने.....
Pasandeeda ghazal sunvayi aapne. Kabhi Faiz ki yaad mein iska jikra cheda tha maine
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/03/2_4060.html
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन ,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर ।
WAh....!sukriya itani acchi gazal padhwane k liye.....
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