जल्दी से कर लो सिंगार
बदल रहा तेवर यह आईना
धीरे – धीरे बिछ रही है शीशे पर धूल
उग रहे हैं इसमें बेर और बबूल
कौन जाने आंख झपकाते ही
हो जाये बंजर यह आईना
जल्दी से कर लो सिंगार
बदल रहा तेवर यह आईना
बदल रहा तेवर यह आईना
आंखों में आंज लो काजर की रेख
क्या पता निकाल दे कोई मीन – मेख
तन से आलोचक है
मन से है शायर यह आईना
जल्दी से कर लो सिंगार
बदल रहा तेवर यह आईना
7 टिप्पणियां:
बहुत खूब.
बहुत सुंदर - और बिल्कुल अलग सा......खुबसूरत रचना...
दिलकश।
ye aaina shringaar karne vaale ko itana daraa kyo.n raha hai...???? :) :)
लूट लिया आपने भाई। क्या खूब।
तन से आलोचक है
मन से है शायर यह आईना
kya khayal hai bahut khoob..
खूबसूरत! कभी एक शेर लिखा था-
हुश्न की धूप ढली जिस्म के मौसम बदले
आइना कितने हादसों का हमकिनार रहा।
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