गुरुवार, 18 सितंबर 2008

नुस्खए- इश्क

वो अजब घड़ी थी कि जिस घड़ी
लिया दर्स नुस्खए- इश्क का,
कि किताब अक्ल की ताक पर

ज्यूं धरी थी वूं ही धरी रही .

( सिराज औरंगाबादी )

5 टिप्‍पणियां:

Ashok Pande ने कहा…

अतीवोत्कृष्टीकरणात्मकतीयतापूरितीकृत्ज़बरजस्तात्मकोन्मुखी!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति...
लेकिन,
अशोक पाणडे जी को भी बधाई...

Ashok Pande ने कहा…

मिज्कू किस बात की बधाई सा?

एस. बी. सिंह ने कहा…

अक्ल को हमसे ऐ शिकायत है कि हमने अक्सर जुनूँ से काम लिया।

Asha Joglekar ने कहा…

कित्ता कहा जी ?