झील,बादल,बारिश और बर्फ़ के शहर नैनीताल से पिछले अठारह वर्षों से त्रैमासिक 'उत्तरा महिला पत्रिका' निकल रही है और उसका बहत्तरवां अंक ( जुलाई - सितम्बर २००८ ) अभी मेरे सामने है. सीमित संसाधनों और बिना किसी तामझाम के इसका अनवरत प्रकाशन इस बात की आश्वस्ति है कि पढ़ने वालों की कमी नहीं है और ही ऐसे लोगों की ही जो तमाम जद्दोजहद के बावजूद अपना काम बखूबी किए जा रहे है. 'उत्तरा' की टीम ( संपादन: उमाभट्ट,शीला रजवार,कमला पंत,बसंती पाठक, सहयोग: गिर्दा,गीता गैरोला,कमल जोशी,जया पांडे,नीरजा टंडन,दिवा भट्ट,अनीता जोशी,जीवन चंद्र पंत,कमल नेगी,विमला असवाल,मधु जोशी,मुन्नी तिवारी,पुष्पा मेलकानी,रीतू जोशी ) की मेहनत और सामग्री के चयन की सजगता इसके पन्नों पर दिखाई देती है.अगर आप आम महिला पत्रिकाओं में परोसी जाने वाली रेसिपी, रसोई, रिश्तेदारी,रंग-रोगन आदि की उम्मीद यहां करेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी, यहां तो स्त्री जीवन का ताप भी है और तत्व भी. साथ ही 'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो' के रंज और रुदन से आगे ले जाने वाला गंभीर विमर्श भी अक्सर यहां मौजूद रहता है. अगर आप अभी तक इस पत्रिका से नहीं जुड़े हैं तो कृपया इसका पता नोट कर लें- परिक्रमा,तल्ला डांडा, तलीताल, नैनीताल - २६३००१ (उत्तराखंड) भारत.
'उत्तरा' के नए अंक में प्रकाशित रचनाओं में वैविध्य है. इसमे जहां एक ओर 'असुरक्षित बचपन' वहीं दूसरी ओर इस्मत चुगताई की आत्मकथा 'कागजी है पैरहन' भी. यह टिप्पणी इसलिए नहीं है कि मुझे इस पत्रिका का रिव्यू करना है बल्कि इसलिए कि इस जरूरी पत्रिका के बारे में उन पाठकों को जानकारी देने की मंशा है जिनके लिए छपे हुए शब्दों का मतलब केवल मनोरंजन भर नहीं है. 'उत्तरा' के इसी अंक में प्रज्ञा रावत की एक बेहद छोटी सी कविता छपी है- 'बीज मंत्र'. मुझे लगता है कि 'देखन में छोटी' यह कविता असल में बहुत बेधक और बड़ी बात कह जाती है.
प्रज्ञा रावत की कविता : बीज मंत्र
जितना सताओगे
उतना उठूगी
जितना दबाओगे
उतना उठूंगी
जितना जलाओगे
उतना फ़ैलूंगी
जितना बांधोगे
उतना बहूंगी
जितना बंद करोगे
उतना गाऊंगी
जितना अपमान करोगे
उतनी निडर हो जाऊंगी
जितना प्रेम करोगे
उतनी निखर जाऊंगी !
( चित्र परिचय : 'उत्तरा' के नए अंक का आवरण ,गोपा प्रकाश की पेंटिंग )
4 टिप्पणियां:
सूचना देने के लिए आभार।
उत्तरा का परिचय अच्छा लगा. प्रज्ञा रावत से ०९९२६४३४५४१ पर बात कर सकते है.
aachhi hai.. bahut acchhi hai!!
प्रज्ञा रावत की कविता सारगर्भित और असरदार है|
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