जो बजे वह बाजा
जो सजे वह साज !
पर मैं क्या करूं ?
न अपने पास कोई गुन
न अपनी कोई आवाज ! !
जो सजे वह साज !
पर मैं क्या करूं ?
न अपने पास कोई गुन
न अपनी कोई आवाज ! !
( संभवत: मुझ जैसों के लिए ही गोसाईं जी ने मानस में कहा होगा -
कवित विवेक एक नहिं मोरे,
सत्य कहऊं लिखि कागद कोरे .)
बहुत दिनों से इस उधेड़बुन में था कि 'कर्मनाशा' पर संगीत प्रस्तुत करूं या नहीं क्योंकि मैं इस क्षेत्र का कोई जानकार नहीं हूं और न ही कोई फ़नकार अथवा विधिवत विद्यार्थी ही, लेकिन संगीत भला लगता है तो क्या करूं ? सुन लेता हूं , गुन लेता हूं और कभी- कभार अपने 'कबाड़खाना' पर कुछ प्रस्तुत भी कर देता हूं और जब पता लगता कि कुछ लोगों ने इस नाचीज की प्रस्तुति को पसंद-सा किया तो यह यकीन पुख्ता होता जाता है कि इस भरी दुनिया में इतना भी कहीं खालीपन नहीं है कि आपका कोई समानधर्मा न हो . बस जरूरत उसे पहचानने भर की है.संगीत का यह सिलसिला इस उम्मीद के साथ पेश है कि इससे कुछ सीखने को मिलेगा और लगे हाथ किसी को आनंद के दो पल भी मिल जायें तो अहोभाग्य !
पहली कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं अहमद हुसैन - मोहम्मद हुसैन के गायन का एक अलग-सा अंदाज. गजल गायकी में ऊंचा मूकाम हासिल कर चुके हुसैन बंधु ने भक्ति और आराधना की जो एक अद्भुत स्रोतस्विनी बहाई है उसी में 'जिन खोज तिन पाइयां' की कोशिश में मैं हिम्मत बांधकर उतरा तो जरूर किन्तु कहां अजस्र संगीत सरिता और कहां मैं 'बपुरा' सो जो भी समझ में आया वह बहुत आदर और सम्मान के साथ इकठ्ठा कर किनारे आ लगा हूं और अब संगीत के तमाम परखियों के बीच बेहद संकोच के साथ अपनी पुटलिया खोल रहा हूं .आप लोग सुने , समझें , सराहें और संभव हो तो बतायें भी तथा बरजें भी कि उस्तादों की थाती को सहेजने का शऊर - सलीका समझ में आता रहे !
प्रस्तुत हैं जनाब अहमद हुसैन - मोहम्मद हुसैन के स्वर में दो भक्तिपरक रचनायें -
शारदे जय हंस वाहिनी.....
अब राधा रानी दे डारो बंशी मोरी......
11 टिप्पणियां:
बहुत आनन्द आया सुन कर.
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
उस्ताद अहमद हुसैन-मो.हुसैन ख़ाकसार के बड़े अज़ीज़ और बड़े बिरादरतुल्य हैं.
इस बेरहम दुनिया ने सिध्दू भाई उन्हें वह नहीं दिया जो उन्हें मिलना चाहिये था.
गायकी,शास्त्र की समझ,आवाज़,कविता और शायरी की गहराई क्या नहीं इन दो गुणी
सुर साधकों में.लेकिन बाज़ारू समय का क्या कीजै.
मनप्राण से आभार आपका इस पेशकश के लिये.
पहली बार आया आपके द्वारे.
ब्लॉग भी भोत सोणा है दादा...मज़ा ला दिया.
ye dono mahaarathii gazab asar kartey hain..sunvaney ka shukriyaa
सुख मिला। धन्यवाद।
आनंदम ! आनंदम !! और ! और !!
वाह! ये तो बहुत सुंदर है। बहुत धन्यवाद सुनवाने का। आपका ब्लाग भी पहली बार ही देखा। उम्दा है, कोई शक़ नहीं।
सुमधुर गीत सुनवाने का आभार जी
- लावण्या
"ah!its really so enjoyable to listen"
Regards
जनाब इतना आंनद आया सुन कर कि अब तो रोज आना पड़ेगा यहां और क्या क्या है आप की पोटलिया में
गुरुवर, इतना संकोच करते करते इतनी झकास टाइप पोस्ट डाली है। हुसैन बंधु कम ही सुनने में आते है मगर बेमिसाल हैं। जाने क्यों वे इतने प्रसिद्ध नहीं।
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