आज प्रस्तुत है 'रंग' सीरीज की अपनी कुछ कविताओं में से यह एक पहली कविता ... । अब क्या कहूँ कि इसमें क्या है ! पता नहीं कुछ है भी कि...। ...यह आप देखें - पढ़ें....
कुछ रंग हैं -
एक दूसरे से अलग
और एक दूसरे में घुलकर
घोलते जाते हुए कुछ और ही रंग
वे रुकते नहीं हैं
चलते हैं सधे पाँव
छोटे - छोटे डग भर कर
लगभग माप लेना चाहते हैं धरती का आयतन
कुछ लकीरें है -
सरल
वंकिम
अतिक्रमित
समानान्तर
और भी कई तरह की
जिनके लिए ज्यामिति सतत खोज रही है अभिधान
कुछ दृश्य हैं -
देखे
अदेखे
और कुछ -कुछ
कल्पना व यथार्थ के संधिस्थल पर समाधिस्थ
यह दुनिया है एक
इसी दुनिया के बीच विद्यमान
यहीं के स्याह - सफेद में रंग भरती
और यहीं की रंगत को विस्मयादिबोधक बनाती
बारम्बार
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( चित्र : चित्रा सिंह की पेंटिंग ' रिफ़्लेक्शंस' , गूगल छवि से साभार)
11 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना
सब के सब अपने रंगों को सिद्ध करने में लगे हैं।
मित्रवर!गणतन्त्र-दिवस की ह्रदय से लाखों वधाइयां !
रचना अच्छी है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जय भारत।
भारत माता की जय हो।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (26-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ६५वें गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें !
सारेरंग मिला कर ही बनाते हैं स्याह और सफेद य़े हम पर है कि हम क्या करना चाहते हैं।
Waah!
सुन्दर प्रस्तुति …………भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हो तो पहले खुद को बदलो
अपने धर्म ईमान की इक कसम लो
रिश्वत ना देने ना लेने की इक पहल करो
सारे जहान में छवि फिर बदल जायेगी
हिन्दुस्तान की तकदीर निखर जायेगी
किस्मत तुम्हारी भी संवर जायेगी
हर थाली में रोटी नज़र आएगी
हर मकान पर इक छत नज़र आएगी
बस इक पहल तुम स्वयं से करके तो देखो
जब हर चेहरे पर खुशियों का कँवल खिल जाएगा
हर आँगन सुरक्षित जब नज़र आएगा
बेटियों बहनों का सम्मान जब सुरक्षित हो जायेगा
फिर गणतंत्र दिवस वास्तव में मन जाएगा
बहुत सुंदर रंग है !
umda rachna ... badhayi
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