शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

अगर मैं मर जाऊँ

संसार के अलग - अलग हिस्सों  की कविताओं के अनुवाद की साझेदारी के क्रम में आइए आज पढ़ते हैं सीरियाई  कवि लीना टिब्बी ( जन्म:१९६३) को। उनका पहला कविता संग्रह १९८९ में प्रकाशित हुआ था। विश्व कविता के पटल पर उनकी सक्रियता निरन्तर उपस्थिति दर्ज कराती है।  कई भाषाओं में उनके कवि कर्म का अनुवाद हो चुका है।प्रस्तुत  है लीना  की यह एक छोटी- सी कविता:

लीना टिब्बी की कविता
अगर मैं मर जाऊँ

अगर मैं मर जाऊँ
कौन भेजेगा मेरे लिए शुभकामनाओं के संदेश
कौन पोंछेगा मेरे माथे से बोझ की लकीरें
कौन मूँदेगा मेरी आँखें।

अगर मैं मर जाऊँ
कौन बुदबुदाएगा मेरे कान में अपनी प्राथनायें                                                                      
कौन रखेगा मेरा सिर अपने तकिए पर
अगर मैं मर जाऊँ
कौन दिलासा देगा मेरी माँ को
और  छिप - छिपकर रोएगा।

अगर मैं मर जाऊँ
अगर मैं  जल्दी से मर जाऊँ
तो कौन निकालेगा तुम्हारे हृदय से मेरा हृदय ?
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 * (अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह  / चित्र : डेविड काप्सन की  कृति  'डेथ  एंड  रिबर्थ ', गूगल छवि से साभार)

4 टिप्‍पणियां:

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-12-2013) "हर टुकड़े में चांद" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1468 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर अनुवाद !

vandana gupta ने कहा…

अगर मैं जल्दी से मर जाऊँ
तो कौन निकालेगा तुम्हारे हृदय से मेरा हृदय ?बहुत सुन्दर अनुवाद

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति