विश्व कविता के अपने पसंदीदा अनुवादों के क्रम को अग्रसर करते हुए आज प्रस्तुत हैं ईथोपिया के युवा कवि ब्यूक्तू सेयुम की दो कवितायें। वे न केवल कवि हैं बल्कि हास्य के अच्छे पर्फ़ार्मर और कथाकार भी हैं। 2008 में उन्हे सर्वश्रेष्ठ युवा कवि का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। 'इन सर्च आफ फैट ' कविता संग्रह के जरिए कविता प्रेमियों की चर्चा में आए इस कवि की कुछ कवितायें आप यहाँ पढ़ेंगे और जल्द ही उनका एक इंटरव्यू भी । आइए , आज पढ़ते - देखते हैं ये बेहद छोटी दो कवितायें जिनकी ऊपरी गठन तो छरहरी व कृशकाय है लेकिन उनके भीतर की कहन या कथ्य की बात इतनी मामूली भी नहीं है जितनी कि वह दिखाई देती है या कि जिसे अपने रोजमर्रा के कार्य - व्यापार में हम बहुत साधारणता से देखने के कायल अथवा अभ्यस्त हैं :
ब्यूक्तू सेयुम की दो कवितायें
01- ब्रह्मांड की सजावट करते हुए
भीड़ में
लोगों के जंगल में पलायन करने के बनिस्बत
जहाँ मुमकिन थी मेरी देह की दुर्गत
मैंने कविताओं का शिकार करना ठीक समझा
और खुले हाथ खर्च करता रहा कविता को।
लेकिन
कविताओं से ज्यादा ईमानदार हैं मक्खियाँ
जबकि
मैं सजावट करता रहा ब्रह्मांड की
उन्होंने मुझे दिखा दिया
कि धूल और गर्द - गुबार से भरा पड़ा है मेरा कमरा।
कोई है
जो दीखना चाहता है बहुत जल्दबाजी में
कोई है
जो दीखना चाहता है बहुत तेजी में
कोई है
जो ड्राइव करता है बढ़िया तरीके से कार
कोई है
जो पहनता है डिजाइनर जूते
और कोई है , जो है बिल्कुल नंगे पांव।
ये सारे बुद्धिजीवी और अंगूठाछाप
सड़क पर यात्रा कर रहे हैं अनवरत
ऊपर से नीचे
इस छोर से उस छोर तक
हो गया है जबरदस्त भीड़- भड़क्का
देखो तो
वे कैसे डोल रहे हैं आगे - पीछे , पीछे - आगे
और किसी को भी दरकार नहीं कि मिले गंतव्य।
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(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह / पेंटिंग : सैम फ्रांसिस की कृति 'अनटाइटल्ड' , गूगल छवि से साभार)
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार को (04-11-2013) "दिमाग का फ्यूज़" (चर्चा मंच 1422) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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