आज दीपावली है या अब यों कहें कि दीपावली अब हो ली है। अब जबकि लगभग आधी रात हो चली है और पटाखों का शोर कुछ कम हो गया है लेकिन बाहर की जगमग में कोई कमी नहीं आई है और अपन घर के अंदर की अपनी छोटी - सी दुनिया में कुछ लिखत - पढ़त के काम में लगे - से हैं तो उपेक्षित समझे , माने जाने वाले पक्षी उल्लू पर बहुत प्यार आ रहा है और यह एक छोटी- सी कविता के कारण संभव हो पा रहा है नहीं तो हमारे आसपास की दुनिया में रात के इस पाखी उल्लू को अशुभ, अशगुन , असुंदर मानने - मनवाने की एक लंबी परिपाटी है । समाज में इससे डरने - डराने के तरह - तरह के संदर्भ व प्रसंग विद्यमान हैं जो भाषा में , मुहावरों में , साहित्य में , सोच - समझ की सरणि में लगभग सब जगह दिखाई दे जाते हैं । आज की अहर्निश जगमग में हो सकता है उल्लू कहीं दुबका पड़ा हो या आज के खास दिन किसी दैवीय सत्ता के वाहन के रूप में काम आ रहा हो ....। जो भी हो , आइए आज पढ़ते - देखते हैं हमारे समय के , हमारी हिन्दुस्तानी अंग्रेजी के बड़े लेखक रस्किन बाड की यह एक छोटी - सी कविता :
रस्किन बांड की कविता
उल्लू
निशि के इस निस्तब्ध निविड़ में
जब सब कुछ रहता है शान्त
उधर पहाड़ी के घन वन में
उड़ चलता है चुपके -चुपके
वन का चंचल चौकीदार
बूढ़े़ - से एक चीड वृक्ष पर
बैठ - ठहर करता आराम।
दोस्ताना है उसका होना
रात्रिचर पाखी की लुक- छिप
नहीं करे कुछ भी नुकसान
मयूर - ध्वनि से कहीं नर्म है
उसका रोदन जो करुणार्द्र।
तब क्यों जग को लगता है डर
सुनकर उल्लू की आवाज
यदि मनुष्य संवाद करें तो
नहीं कोई इसमें अपवाद
तो उल्लू भी चिल्ला सकते है
यह है उनका निज अधिकार।
मुझ पर तनिक नहीं करता है
उनका रोना जादू टोना
मैं तो यही समझता हूँ कि
वे कहते है -
'कितनी अच्छी है रात है लोगो
सब है भला , ठीक है सब कुछ
डरना नही चैन से सोना।'
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(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह / पेंटिंग : शिजुन एच० मन्स की कृति 'गर्ल विद आउल' , गूगल छवि से साभार)
5 टिप्पणियां:
Bahut Sundar!
सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर कविता प्रांजल अनुवाद
सुन्दर रचना
वाह!!! बहुत सुंदर !!!!!
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई--
उजाले पर्व की उजली शुभकामनाएं-----
आंगन में सुखों के अनन्त दीपक जगमगाते रहें------
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