बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

घेराबंदी से घिरे शहर के बहिरंग : वेरा पावलोवा

समकालीन रूसी कविता की एक प्रमुख हस्ताक्षर वेरा पावलोवा ( जन्म : १९६३ )  की बहुत सी कवितायें आप इस ठिकाने पर और अन्यत्र  पढ़ चुके है। आज इसी क्रम में प्रस्तुत हैं उनकी दो ( और) कवितायें। वेरा की कवितायें अक्सर कलेवर में बहुत ही कृशकाय होती हैं लेकिन उनके भीतर जो विचार , प्रसंग व स्थिति(यों) की सरणि विद्यमान होती है वह न केवल कई तहों में बुनी हुई रहती है बल्कि कई तहों को खोलने वाली भी होती है।  उनके यहाँ प्रेम सतह पर है; जो स्थूल भी है और उघड़ा हुआ भी  लेकिन उसी के भीतर विषाद व विराग का 'रिजोनेंस' भी  सतत उपस्थित है। उनकी कविताओं के कोई शीषक भी नहीं होते हैं प्राय:। उनकी अधिकांश कविताओं से साक्षात होते हुए पहली नजर में उन्हें  स्त्रीवादी ,  इहलौकिकतावादी , क्षणवादी , देहवादी और न जाने क्या - क्या कहा जा सकता है और इससे आगे बढ़कर  यह भी कहा जा सकता है कि अक्सर उनके प्रेम की सीमा व विस्तार का दायरा 'इरोटिसिज्म'  तक (भी )तक पहुँच जाता है। जो भी हो, उनकी कविताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता, आइए देखते - पढ़ते हैं ये दो कवितायें....


वेरा पावलोवा की दो कवितायें
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)     


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पीठ पर मेरी भार
गर्भ में मेरे एक प्रकाश.
अब मुझ में रहो,
उगाओ जड़ें.

जब तुम हो उपरिवत
मुझे हो रहा है भान
विजयी व गर्वित होने का
मानो  तुम्हें बाहर निकाल रही हूँ मैं
घेराबंदी से घिरे  शहर के बहिरंग।.

30                                                                         

प्रेम के बाद निढाल पसरते हुए:

"देखो
भर गई है सारी की सारी छत
सितारों से"

"और हो सकता है
उनमें से किसी एक पर
वास करता हो जीवन"
--
(चित्र : निकोलस क्रैग की चित्रकृति, गूगल छवि से साभार)

6 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

अजेय ने कहा…

वाह सुबह सुबह जीवन दर्शन !! निहाल ..... हुआ .

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण अनुवाद,,,,

RECENT POST: पिता.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन से भरी अभिव्यक्ति

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचनाएँ