शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

साक्ष्य , विलोम और यूँ ही

पिछली पोस्ट में पुरानी डायरी से एक कविता सबके साथ साझा की गई थी। इसे ठीकठाक माना गया , आभार। उस डायरी में लगभग सभी शुरुआती कवितायें हैं जो विद्यार्थी जीवन  के दौरान लिखी गई थीं। आज जब इतने बरस बाद अक्सर उन अनगढ़ अभिव्यक्तियों से रू- ब- रू  होना होता है तब ( उस वक्त की ) अपनी तमाम तरह की ( गंभीर ) बेवकूफियों पर हँसी आती है और साथ ही  प्राय: स्मृतियों  के संग्रहालय की  टेढ़ी - मेढ़ी वीथिकाओं से गुजरते ऐसा भी लगता है कि वे भी क्या दिन थे !  अब तो ...बरबस याद आ जाते हैं रहीम - 
   
                                                 रहिमन अब वे बिरछ कहं,जिनकर छाँह गंभीर।
   बागन बिच - बिच देखिअत,  सेंहुँड़, कुंज करीर॥

स्मृति का अपना विलक्षण लोक है। अतीत की अपनी मायावी दुनिया है। वर्तमान की अपनी एक निरन्तरता है जो रोज नए - नए  रूप दिखाती है और नई चुनौतियाँ और नई उम्मीदें लेकर आती है फिर कहीं कुछ है जो 'ढूँढ़्ता है फिर वही फुरसत के रात दिन।' यह अच्छी तरह पता है  'तसव्वुरे जानां किए हुए' बैठे रहने से काम नहीं चलने वाला है फिर भी  पुरानी डायरी और उसमें दर्ज शुरुआती कविताओं के मार्फत  कभी - कभार व्यतीत में विचरण कर लेने में  कोई बुराई नहीं है शायद।  तो आइए , आज देखते - पढ़ते  साझा करते हैं ये तीन ( पुरानी ) कवितायें  :

स्मृति - त्रिवेणी :  तीन ( पुरानी ) कवितायें


०१- साक्ष्य

बर्फ़ अब भी गिरती है
और खालीपन भर - सा जाता है।
इस निर्जन शहर में
लोग ( शायद ) अब भी रहते हैं
क्योंकि -
पगडंडियों पर
पाँवों के इक्का - दुक्का निशान हैं
कहीं - कहीं खून के धब्बे
और एक अशब्द चीख भी।

०२- विलोम

मैं
इस गली के नुक्क्कड़ पर लगा
एक उदास लैम्प पोस्ट।
अब मैं रोशनी बाँटता नहीं
रोशनी पीता हूँ
और
बे - वजह ही
दिन को रात बनाने की
असफल कोशिश में लिप्त रहता हूँ।

०३- यूँ ही

तुम्हरी हँसी को मैं
हरसिंगार के फूलों की
अंतहीन बारिश नहीं कहूँगा
और यह भी नहीं कि
चाँदनी की प्यालियों से उफनकर
बहती हुई
मदिर - धार है तुम्हारी हँसी।
बल्कि यह कि  -
टाइपराइटर के खट - खट जैसी
कोई एक आवाज है तुम्हारी हँसी
जो मुझे फिलहाल अच्छी लग रही है।
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5 टिप्‍पणियां:

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

टाइपराइटर के खट - खट जैसी
कोई एक आवाज है तुम्हारी हँसी
जो मुझे फिलहाल अच्छी लग रही है।....

बहुत ही अच्छी कविता... वैसे तीनों ही अच्छी लगीं...

रविकर ने कहा…

दीपावली की शुभकामनाएं ||
सुन्दर प्रस्तुति की बहुत बहुत बधाई ||

Onkar ने कहा…

Wah. bahut khoob.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

पुरानी डायरी से तीन कालजयी कविता साझा करने के लिए आभार।
नई डायरी नाराज तो नहीं है कि आप अब उनकी तरफ देखते भी नहीं?

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!