पिछले कुछ महीनों से लिखना - पढ़ना बहुत कम हुआ है। संगीत सुनना तो बहुत ही कम। बाहर बरामदे में बैठकर पेड़ - पौधों से बतियाना भी लगता है कि शायद इतिहास की बात हो। इधर गर्मी खूब पड़ रही है, खूब पसीना आ रहा है ;टपकता , चिन- चिन करता पसीना। लेकिन आज सुबह से फुरसत नसीब हुई है।झपकी ली, हल्की बारिश को देखा, निरुद्देश्य छत पर गया, कुछ पढ़ा , कुछ सुना और अब कुछ लिखा है - कविता के शिल्प में। आइए इसे देखें साझा करें...ये दो कवितायें..
तलाश -१
दूर तक जाते हैं दु:ख के तार
वहाँ भी
जहाँ हम नहीं होते साकार।
धुँधलके में कौंधता है
एक चेहरा अस्पष्ट
उधड़ती चली जाती हैं
रहस्य की तमाम सीवनें
और प्रकट होने लगता है एक अस्तित्व।
बात - बतकही की कामना से
भरी होती है हृदय की सुराही
फिर भी
गले में अटक जाती है कोई फाँस
और छलक नहीं पाता है
शब्दों का सादा जल।
इसी पृथ्वी पर
मैं हूँ और तुम भी
यहीं स्थापित है हमारा यथार्थ
और यहीं
पगलाए हिरन - सा
अनवरत दौड़ रहा है कोई स्वप्न।
हथेलियों की सतह पर
कोई अक्स उभरता है बार - बार
दु:ख उन्हें दुलारता है
और घटता जाता है
दूरियों का अंबार।
तलाश -२
रात में बात करते हैं सितारे
उन्हें सब पता है
किस्से हमारे - तुम्हारे।
वे सुनाते हैं
सदियों पुरानी कथायें
दिखाते हैं
कई प्रकाशवर्ष दूर के दृश्य
और खोज लाते हैं
वे गुमशुदा शिलायें भी
जिन पर कभी बड़े जतन से
उकेरा गया था कोई नाम।
सितारों को सब पता है
उनके लिए कुछ भी नहीं है गोपनीय
दिक्काल की सीमाओं के आरपार
बनी रहती है उनकी आवाजाही
तभी तो
नजूमियों और प्रेमियों को
खूब भाता है उनका सानिध्य।
चाँद की लालटेन थामे
हम अब भी गिनते हैं सितारे
क्योंकि वे जानते हैं
किस्से हमारे - तुम्हारे।
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( पेंटिंग : मरीना पेत्रो )
21 टिप्पणियां:
जिन पर कभी बड़े जतन से
उकेरा गया था कोई नाम।
क्या बात है ! जनाब बहुत खूब हर दौर की मुहब्बत को समेटा है आपने बधाई .....एक और समय से परे कविता के लिए
विचारोत्तेजक कविता।
दोनों कविताओं में बहुत गहरे भाव निहित हैं!
प्रणाम !!
सुख दुख से गहरा नाता है,
बस भेद बताना आता है।
वो उफ़क़ का पहला तारा ,वो शफ़क़ पे ढलती शाम
वस्ल के मासूम लम्हों की निशानी हो गए
अपनी बात याद आ गई :)
हथेलियों की सतह पर
कोई अक्स उभरता है बार - बार
दु:ख उन्हें दुलारता है
और घटता जाता है
दूरियों का अंबार।
bahut sunder ..
दोनो कविताओ के भावो ने भावविभोर कर दिया।
dono kavitaao me man ki khalbali sunder shabdo me dhal gayi hai.
वाह दोनों ही बहुत कविताएं सुंदर हैं
दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं ...
ओह..क्या खूबसूरत दोनों ही कवितायें हैं
बहुत सुन्दर रचना...बधाई...पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, अच्छा लगा
चाँद की लालटेन थामे
हम अब भी गिनते हैं सितारे
क्योंकि वे जानते हैं
किस्से हमारे - तुम्हारे।
-----dono hi kavitayen bahut hi bhavmai,aur sunder shabdon ke saath likhi gai.hain.badhaai aapko.
please visit my blog thanks.
चाँद की लालटेन ....बहुत खूब लिखा
सब पता है, सितारों को
सुन्दर हैं दोनों ही . :-)
जिंदगी के करीब ले जाती कविताएं...
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विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?
चाँद की लालटेन थामे
हम अब भी गिनते हैं सितारे
क्योंकि वे जानते हैं
किस्से हमारे - तुम्हारे।
चाँद और तारे हमारे राजदार हैं युगों युगों से ,
मुग्धकारी रचनाएँ !
अप्रतिम कविताएँ, बिम्ब अभिराम, पढ़ गया अविराम ! बधाई सम्मानीय सिद्धेश्वर जी ! नमन !
चाँद की लालटेन थामे
हम अब भी गिनते हैं सितारे....बहुत खूबसूरत !!
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