* ममांग दाई की कवितायें मैं पिछले कई वर्षों से पढ़ता रहा हूँ। पूर्वोत्तर भारत, विशेष रूप से अरुणाचल में बिताये अपने जीवन के (लगभग) एक दशक की स्मृतियों में अवगाहन में उनकी कवितायें बहुत अच्छा साथ देती हैं। २००७ में अपने लिखे एक सफरनामे में उनकी कविताओं के एकाध अंश को मूल अंग्रेजी में उद्धृत किया था और साथ ही एक छोटी - सी कविता को हिन्दी में अनूदित भी किया था। वह यात्रावृत हिन्दी की एक ' बहुत बड़ी' पत्रिका के पास पिछले तीन साल से स्वीकृत होकर प्रकाशन की राह देख रहा है। याद दिलाने / पूछने पर संपादक महोदय का प्रेम पत्र मिल जाता है कि 'आपकी रचना हमारे पास सुरक्षित है। यथासमय उसका उपयोग किया जाएगा।' पता नहीं उस यात्रावृत को कब प्रकाशन की राह मिलेगी ! खैर, इस बीच , इसी साल २००१ में ममांग जी को साहित्य में उत्कृष्ट योगदान पद्मश्री से सम्मानित किया गया है । उन्हें बधाई का मेल करते हुए जब मैंने उनकी कविताओं के अनुवाद करने की अपनी ( पुरानी) इच्छा को व्यक्त किया तो जवाब में उन्होंने सहमति व अपनी कविताओं को विपुल हिन्दी पाठक बिरादरी के समक्ष रखे जाने के प्रस्ताव पर प्रसन्नता की व्यक्त तो अनुवाद का काम और आगे बढ़ा है।
* हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया में शरद कोकास उन ब्लॉगर्स में से हैं जो हिन्दी साहित्य की दुनिया में सतत सक्रिय हैं और उनकी गिनती आज के प्रतिष्ठित कवियों में होती है। शरद भाई नवरात्रि में लगातार नौ दिन तक अपने ब्लॉग 'शरद कोकास' पर अलग - अलग तरीके से नौ स्त्री - कवियों / कवयत्रियों की कवितायें प्रस्तुत करते रहे हैं। यह उनका प्रेम व सदाशयता है कि उन्होंने इस आयोजन मुझ नाचीज को भी साथ चलने का मौका देते हुए कुछ सीखने और शेयर करने का अवसर दिया है। इस बार 'चैत्र नवरात्रि कविता उत्सव - २०११' की थीम है - भारतीय अंग्रेजी कवयत्रियों की कविताओं का हिन्दी अनुवाद। मुझे खुशी है कि भाई शरद जी ने इसमें लगातार चार दिनों तक मेरे अनुवाद प्रकाशित किए हैं और एक अनुवादक के रूप में मेरे काम को एक अच्छा मंच प्रदान किया है।
* कविता के अंत की तमाम घोषणाओं के बावजूद अच्छी कविताओं की कोई कमी नहीं है और न ही अच्छी कविताओं के गुण ग्राहकों की। अर्चना चावजी कविता प्रेमी हैं, वह कविताओं का बहुत अच्छा गायन - वाचन भी करती हैं उनका ब्लॉग है 'मेरे मन की'। अर्चना जी 'चैत्र नवरात्रि कविता उत्सव - २०११' की सभी नौ प्रस्तुतियों को अपना स्वर दे रही हैं इसी क्रम में उन्होंने तीसरे दिन की प्रस्तुति 'ममांग दाई की कविता' को भी अपना स्वर दिया है।
* यह पोस्ट एक तरह से कई कविता प्रेमियों व प्रस्तुतिकारों की सामूहिकता का प्रतिफल है। ममांग दाई जी ने कविताओं की रचना की है, मैंने उन्हें अनूदित किया है , शरद कोकास जी ने उनकी सुंदर प्रस्तुति की है और अर्चना चावजी ने कवि परिचय व कविताओं को अपना स्पष्ट - सधा स्वर देकर एक नया रूप दे दिया है।
* ममांग जी , शरद जी और अर्चना जी के प्रति आभार - धन्यवाद व्यक्त करते हुए मैं यहां उन सभी कविता प्रेमियों के प्रति आभार व्यक्त कर रहा हूँ जिन्होंने प्रस्तुति - पटल पर विजिट कर एक अनुवादक के रूप में मेरे काम को मान्यता दी है और निश्चित रूप से उनके प्रोत्साहन से कुछ और ( अच्छा ) करने की नई राह भी मिली है. तो लीजिए ( एक बार फिर! ) 'कर्मनाशा' पर आज प्रस्तुत है ममांग दाई का संक्षिप्त परिचय व कुछ कवितायें ।
* ममांग दाई न केवल पूर्वोत्तर भारत बल्कि समकालीन भारतीय अंग्रेजी लेखन की एक प्रतिनिधि हस्ताक्षर है। वह पत्रकारिता ,आकाशवाणी और दूरदर्शन ईटानगर से जुड़ी रही हैं । उन्होंने कुछ समय तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में नौकरी भी की , बाद में छोड़ दी । अब स्वतंत्र लेखन । उन्हें `अरूणाचल प्रदेश : द हिडेन लैण्ड´ पुस्तक पर पहला `वेरियर एलविन अवार्ड ` मिल चुका है और इसी वर्ष साहित्य सेवा के लिए वे पद्मश्री सम्मान से नवाजी गई हैं। प्रस्तुत हैं ममांग दाई की तीन कवितायें जो उनके के संग्रह `रिवर पोएम्स´ से साभार ली गई हैं :
०१- बारिश
बारिश के अपने नियम हैं
अपने कायदे,
जब दिन होता है खाली - उचाट
तब पहाड़ की भृकुटि पर उदित होता है
स्मृति का अंधड़।
हरे पेड़ होने लगते हैं और हरे -और ऊंचे।
०२- सन्नाटा
कभी - कभी मैं झुका लेती हूँ अपना शीश
और विलाप करती हूँ
कभी - कभी मैं ढँक लेती हूँ अपना चेहरा
और विलाप करती हूँ
कभी - कभी मैं मुस्कुराती हूँ
और तब भी
विलाप करती हूँ।
लेकिन तुम्हें नहीं आती है यह कला।
०३-वन पाखी
मैंने सोचा कि प्रेम किया तुमने मुझसे
कितना दुखद है यह
कि इस वासंती आकाश में
सब कुछ है धुंध और भाप।
आखिर क्यों रोए जा रहे हैं वन पाखी?
13 टिप्पणियां:
बेहतरीन रचनायें...अर्चना जी से सुनना सुखकर रहा.
तीनों सुन्दर क्षणिकायें, भारिश के नियम अरुणाचल में रहने वाला ही समझ सकता है।
आभार आपका,ममांग जी का और शरद जी का भी.....
मुझे इस योग्य समझने के लिए...शुक्रिया
...आभर।
सन्नाटा और वनपाखी बहुत अच्छे अनुवाद हैं । मार्मिक
कभी - कभी मैं मुस्कुराती हूँ
और तब भी
विलाप करती हूँ।
लेकिन तुम्हें नहीं आती है यह कला।
कितनी सुन्दर !
सुन्दर प्रस्तुति!
--
अर्चना चावजी ने अच्छा वाचन किया है!
ममांग जी का परिचय अच्छा लगा । सुन्दर अनुवाद के साथ बेहतरीन क्षणिकाएं।
sundar kavita hai - कभी - कभी मैं झुका लेती हूँ अपना शीश
और विलाप करती हूँ
कभी - कभी मैं ढँक लेती हूँ अपना चेहरा
और विलाप करती हूँ
कभी - कभी मैं मुस्कुराती हूँ
और तब भी
विलाप करती हूँ।
लेकिन तुम्हें नहीं आती है यह कला।
anuwad ka bhi yog tou hai hi ise grahay banane me
०२- सन्नाटा
@लेकिन तुम्हें नहीं आती है यह कला।
कसम से सभी कुछ तो अपने जैसा लगता है........ या फिर अपने उपर बीता सा, या सामने दिख रहा साश्वत सा ..
इतनी सुन्दर कवितायें पढवाने-सुनवाने के लिये आभार.
बहुत अच्छी कवितायें...
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