इस बार की बिलासपुर - भिलाई यात्रा बहुत संक्षिप्त और भाग - दौड़ वाली रही।यह एक तरह से पाला छूकर लौटना जैसा ही था। इस बार कई वर्षों के बाद दुर्गापूजा और रावण - दहन देख पाया। बच्चॊं ने तो यह सब इतने नजदीक से और निश्चिंत होकर पहली बार देखा। १७ अक्टूबर को सुबह बिलासपुर - चेन्नई सुपरफ़ास्ट से चले । उतरना तो दुर्ग में था लेकिन ट्रेन ने ऐसी मेहमान नवाजी दिखाई कि वह पावर हाउस पर ही रुक गई।सीधे कुशवाहा जी के सेक्टर टू वाले नए निवास पर पहुँचे । पंडित जी काफी देर बाद आए और पूजापाठ शुरु हुई । अपन कुछ देर बैठे , फोन - फान किया तभी पता चला कि बिल्कुल पास में ही हनुमान मंदिर और छठ तालाब के सामने वाले मैदान में रावण का पुतला खड़ा है। यह जान अपन बेटे अंचल जी को लेकर उनसे मिलने चल दिए। धूप में चुपचाप खड़े रावण से कुछ गपशप की और तस्वीर खींच ली। अंचल जी का मन हुआ कि वह रावण के साथ फोटो उतरवायेंगे। उनकी यह इच्छा भी पूरी हुई।दोपहर बाद एक बार फिर तस्वीर खींची और शाम को दहन के समय भी। लीजिए इन्हें आप भी देखिए :
धूप में अब हो रही है युद्ध की तैयारी।
शाम को ही आएगी राम की सवारी।
मरता है , जलता है हर साल रावण,
फिर भी सुधरती नही दुनिया हमारी।
चलो करें ,दर्शन दशानन का आज।
शाम होते आएगा राम जी का राज।
आज है , दशहरा खूब कर लो मौज
रोज तो लगा ही रहता है काम काज।
देखो , भीड़ लगी हर ओर।
तरह - तरह का उठता शोर।
रंग - रंग की अतिशबाजी
जनता सचमुच माँगे मोर !
हुई असत्य पर सत्य की जय।
ऐसे ही अशुभ का होता क्षय ।
खुद के भीतर झाँके हम भी ,
ताकि न बिगड़े जीवन - लय!
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पुनश्च : इससे आगे का अहवाल अगली पोस्ट में...
3 टिप्पणियां:
रावण जी की तस्वीर और आपकी कविता पसंद आई। अंचल जी की बात सुनकर मुझे मेरे बेटे की याद हो आई। वह भोपाल में है। जब अंचल जितना रहा होगा तो उसे हर दशहरे पर अपना रावण बनाने का जुनून सवार रहता था। लगातार चार साल तक उसने अपना रावण बनाया और जलाया।
सच है शायद हम पूरे मन से रावण का दहन नहीं करते हैं,उसका कुछ अंश हमारे मन में भी रह ही जाता है। इसीलिए वह हर साल आ धमकता है।
... sundar kavitaayen ... prabhaavashaalee post !!!
मौबाइल के चित्र और कविता दोनों ही मनमोहक हैं!
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