बुधवार, 16 जून 2010

उजला होता जा रहा है अधिक उज्जवल


वह कथा साहित्य की गंभीर अध्येता हैं। वह अंग्रेजी साहित्य की अध्यापक हैं। वह चित्रकार हैं। वह सामाजिक सरोकारों से सक्रिय जुड़ा़व रखने वाली कार्यकर्ता हैं। वह अनुवादक हैं। वह संपादक हैं। वह अमेरिका के आयोवा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की फेलो रह चुकी हैं। वह एक कवि हैं। वह दिल्ली में रहती हैं और उन्हें हिमालय से बहुत प्रेम है। सुकृता जी ( सुकृता पॉल कुमार ) का जन्म और पालन पोषण केन्या में हुआ है और पिछले कई दशकों से वह अपनी कविताओं के जरिए अपनी जड़ों की तलाश के क्रम में रत हैं। उनके चार कविता संग्रह Oscillations, Apurna, Folds of Silence और Without Margins प्रकाशित हो चुके हैं। हमारे समय की एक वरिष्ठ , सजग और प्रतिबद्ध रचनाकार का बड़प्पन है कि उन्होंने अपनी कविताओं के अनुवाद और हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में उनकी प्रस्तुति हेतु अनुमति दी है। तो लीजिए प्रस्तुत हैं उनके चौथे संग्रह में संकलित दो कवितायें :


सुकृता की दो अंग्रेजी कवितायें
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

***
01 . नीरवता को तोड़ते हुए

शब्द झरते हैं
सुमुखि के मुख से
बारिश की तरह

रेगिस्तानों पर।
*
अंतस में आड़ोलित
आँधियों और चक्रवातों के पश्चात

शब्द गिरते हैं
शिलाखंडों की तरह।
*
अटक गए हैं शब्द
जमी हुई
बर्फ़ की तरह

प्रेमियों के कंठ में।
*
विचारों में पिघलते हुए
मस्तिष्क में उतराते हुए

एकत्र हो रहे हैं शब्द
अनकहे वाक्यों में।

02. परिज्ञान

रोशनी के उस वृत्त के
ठीक मध्य में
उभर रहा है
अनुभवों की सरिता में
हाँफता -खीजता
मेरे जीवन का सच

इतना उजला
कि देख पाना मुमकिन नहीं मेरे वास्ते।

गड्ड मड्ड हो गए हैं सारे रंग
जिन्दगियाँ एक दूजे में सीझ रही हैं
उजला होता जा रहा है अधिक उज्ज्वल
और मैं
पहले से अधिक दृष्टिहीन।

6 टिप्‍पणियां:

Vinashaay sharma ने कहा…

जीवन की सच्चाईयों पर आधारित अच्छी कवितायें ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुकृता जी की दोनों ही कविताओं का अनुवाद
बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है, आपने!
--
अंम्रेजी की कविताओं मं छिपे खज़ाने को
परोसने के लिए-
--
आपका आभार!

डॉ .अनुराग ने कहा…

गड्ड मड्ड हो गए हैं सारे रंग
जिन्दगियाँ एक दूजे में सीझ रही हैं
उजला होता जा रहा है अधिक उज्ज्वल
और मैं
पहले से अधिक दृष्टिहीन।

अद्भुत....वाकई कवियत्री से मिलवाने का आभार !

अजेय ने कहा…

अरे वाह! केलंग वाली सुकृता ?

पारुल "पुखराज" ने कहा…

उजला होता जा रहा है अधिक उज्ज्वल
और मैं
पहले से अधिक दृष्टिहीन।

sach ka ujaalaa..sehen kar pana mushkil

anuvad bahut kuch sikha rahe hain..khidki khol rahe hain..

शरद कोकास ने कहा…

बहुत अच्छी कवितायें है ं और बेहतरीन अनुवाद