* इस ठिकाने पर अक्सर विश्व कविता के अनुवाद को प्रस्तुत किया जाता रहा है। इसी क्रम में आज प्रस्तुत है जापान के मशहूर कवि , अनुवादक और अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर नाओशी कोरियामा की एक बहुपठित और बहुचर्चित कविता जिसका शीर्षक है ' कविता की रोटी'। यह उनसठ शब्दों की , बिना विराम चिन्हों वाली एक छॊटी - सी कविता है जिसमें बेहद आसान शब्दों में और बेहद आसान तरीके से कविता की पाकविधि / रेसिपी को बताया गया है। पिछले कुछ दिनों से गरिष्ठ किस्म के काम में लगा हुआ हूँ , सो आज मन है कि कुछ स्वादिष्ट व सुपाच्य जैसा पकाया ,खाया जाय। तो लीजिए ..... अब आप ही बूझें व बतायें कि इसमें क्या कैसा है..। अनुवाद की प्रक्रिया में मैंने शब्दों की गिनती का मोह नहीं रखा है और यथास्थान विराम चिन्हों का प्रयोग भी किया है।
कविता की रोटी / नाओशी कोरियामा
( मूल अंग्रेजी से अनुवाद :सिद्धेश्वर सिंह )
इस लोंदे में
मिश्रित करो
अपनी प्रेरणाओं का ख़मीर।
इसे खूब गूँदो
प्यार के पानी संग।
अब
इसकी लोई बनाओ।
इस काम में खर्च कर दो
अपनी पूरी ताकत।
रख दो इसे कहीं भी
तब तक
जब तक कि फूल कर
बन न जाय यह एक बड़ा पिंड
अपने ही भीतर के बल को सहेज कर।
इसे फिर से गूँदो
आकार दो गोल - गोल
और अब सेंकते रहो इसे
अपने हृदय की भठ्ठी में।
------------
टिप्पणी : आज शाम एक अनौपचारिक ब्लागर मीट में इस अनुवाद के स्मरण पर आधारित पाठ को डा० रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी और श्री रावेन्द्र कुमार 'रवि' जी के साथ शेयर किया गया। इस अनुवाद के इन पहले दो श्रोताओं के प्रति हृदय से आभार !
कविता की रोटी / नाओशी कोरियामा
( मूल अंग्रेजी से अनुवाद :सिद्धेश्वर सिंह )
इस लोंदे में
मिश्रित करो
अपनी प्रेरणाओं का ख़मीर।
इसे खूब गूँदो
प्यार के पानी संग।
अब
इसकी लोई बनाओ।
इस काम में खर्च कर दो
अपनी पूरी ताकत।
रख दो इसे कहीं भी
तब तक
जब तक कि फूल कर
बन न जाय यह एक बड़ा पिंड
अपने ही भीतर के बल को सहेज कर।
इसे फिर से गूँदो
आकार दो गोल - गोल
और अब सेंकते रहो इसे
अपने हृदय की भठ्ठी में।
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टिप्पणी : आज शाम एक अनौपचारिक ब्लागर मीट में इस अनुवाद के स्मरण पर आधारित पाठ को डा० रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी और श्री रावेन्द्र कुमार 'रवि' जी के साथ शेयर किया गया। इस अनुवाद के इन पहले दो श्रोताओं के प्रति हृदय से आभार !
8 टिप्पणियां:
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत बढ़िया रेसिपी बताई है....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई
इसका स्वाद अलग है
बढिया है. बधाई.
भुखे पेट कविता ना होई गोपाला !!
bahut svadisht recipi hai aur asan bhi har koi bna skta hai auris pak kala me nipun ho skta hai.
कमाल की कविता ! अनुवाद के विशिष्ट कार्य के लिए साधुवाद !
एक आसान सी रेसिपी सुझाने के लिए आभार. भविष्य में इसका ही प्रयोग होगा. बहुत बेहतरीन कविता और उसका अनुवाद
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