सोमवार, 15 मार्च 2010

एक पक्षी के साथ सुबह


* आज की सुबह एक पक्षी के साथ हुई। अपनी बैठक का परदा जब धीरे से सरकाया तो खिड़की के बाहर गमले का निरीक्षण करते हुए एक पाखी को पाया। रूप - रंग का क्या करूं बखान ! कमरे के भीतर से ही मोबाइल से खींची गईं दो तस्वीरें हाजिर हैं श्रीमान !
*मन में आया है अभी कुछ - कुछ...कविता या कवितानुमा कोई चीज...आइए देख - पढ़ लेते हैं..



किस चिड़िया का नाम

मुझे पता नहीं इस चिड़िया का नाम
मैं यह भी नहीं जानता
कि पक्षी विज्ञान है किस चिड़िया का नाम।
बस इसे देखा तो
'सुन्दर' शब्द के कई पर्यायवाची याद आ गए
- जैसे : रमणीय, मोहक , अभिराम ...

जल्दी से उसे बुलाया
और एक सुन्दर संसार से
साक्षात्कार कराने का सुख पाया।

बच्चे अभी नींद में थे
इस दुनिया के कोलाहल से दूर
उनके सपनों में तैर रहे थे
इस दुनिया को
सुन्दर बनाने वाले खग -मृग - पुष्प।

बाहर चढ़ रही थी धूप
शुरू कर दिया था सबने अपना कामकाज
हम खुश थे
दिख गया था कुछ नया - नया आज।



'सुबह उठने के कितने फायदे हैं'
कानों पड़ा एक स्वर
यह उलाहना भी थी और सेहत के लिए सीख भी
ओह !
तो ऐसी ही अभिव्यक्तियों को
'कान्ता सम्मित उपदेश' कहते हैं संस्कृत के काव्याचार्य !

प्यारे पाखी ! जो भी है तुम्हारा नाम
ऐसे ही रोज आ जाओ
और हर दिन मेरी सुबह में नए - नए रंग भर जाओ।

13 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

देखा ना सुबह उठने के कितने फायदे हैं । हमे भी रोज़ यही सुनना पड़ता है ।

Udan Tashtari ने कहा…

प्यारे पाखी ! जो भी है तुम्हारा नाम
ऐसे ही रोज आ जाओ
और हर दिन मेरी सुबह में नए - नए रंग भर जाओ।

-बहुत सुन्दर!! जल्दी उठने के यह फायदे हैं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और मनभावन रचना!
भारतीय नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Arvind Mishra ने कहा…

होना तो महलाठ (वुड पाई) चाहिए मगर लग रही है महोख (क्रो फीसेंट )-आप खुद गूगलिंग कर लें और हमें भी बताएं (drarvind3 @gmail .com )
कविता बहुत अच्छी है !!

बेनामी ने कहा…

बात तो सही है
सुबह उठने के कितने फायदे हैं

खूबसूरत चित्र व कविता

गौतम राजऋषि ने कहा…

बहुत खूब सिद्धेश्वर जी...बहुत खूब। उन्हीं पर्यायवाचियों का इस्तेमाल करूँ तो रमणीय, मोहक अभिराम...तस्वीर, कविता और प्रस्तुति का अंदाज।

मोबाइल से ली गयी तस्वीर और लेखनी से उपजी कविता- गज़ब के पूरक।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

एक ताज़ा कविता सिद्धेश्वर भाई…कविता के बहाने सुबह का मज़ा तो हम निशाचर भी ले ही सकते हैं…

पारुल "पुखराज" ने कहा…

hamare yahan bhii khuub aatey hain ye vale pakhi...naam na jane phir bhi

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

'कान्ता सम्मित उपदेश'
संस्कृत साहित्य और काव्य की मर्मज्ञता उसकी रसानुभूति स्वयं तो करते ही हैं आप ,पाठक को भी उसी भाव भूमि में खींच ले जाते हैं आप सिद्धेश्वर जी !चित्र और रचना दौनों ही सम्मोहक हैं ,बधाई !

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

पाखी के साथ यह मुलाकात
बहुत अच्छी लगी --

राजालाल आई,
अच्छे से मुस्काई!

भइया जी से
सुंदर-सुंदर
कविता लिखाई,
फिर हमको पढ़वाई!
राजालाल आई ... ... .

भइया जी से
प्यारी-प्यारी
फ़ोटो खिंचाई,
फिर हमको दिखलाई!
राजालाल आई ... ... .

Himanshu Pandey ने कहा…

संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति ! अंतिम दो पंक्तियों की सहजता ने बांध लिया ! आभार ।

Unknown ने कहा…

इस पक्षी का नाम करैवा हैं और इसे अग्रेजी में ट्री पाई भी कहते हैं। यह पाली जिले जिले के गोडवाड क्षेत्र में बहुतायत पाया जाता हैं यह अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग आवाज निकालता हैं। यह बहुत ही सुन्दर पक्षी हैं।-प्रमोदपाल सिंह मेघवाल