पिछली रात लगभग साढ़े दस बजे के बाद बारिश शुरु हुई थी . सारी रात बादल बरसते रहे.तपन से राहत मिली. सुबह उठकर देखा तो सब ओर भीगा - भीगा आलम था. खेतों में खड़े धान के नर्म - नन्हें बिरवे खुश, प्रसन्न और तृ्प्त दिखे.आसमान में बादल और नीचे आँखों को तरावट देने वाला हरापन...धूप में पेंसिल स्केच की तरह और बारिश के बाद खुले मौसम में हाथ बढ़ाकर छू लेने भर की दूरी का जादू दिखाने वाले पहाड़ क्षितिज-मंच पर शोभायमन बादलों के परदे के पीछे गुम थे......शायद अपने अगले खेल के लिए रिहर्सल - पूर्वाभ्यास करते हुए . दोपहर बाद तक कभी तेज कभी मद्धम बारिश होती रही...जो भी मिला उसके चेहरे पर खुशी दिखी ...अपन भी खुश हुए बारिश में भीगे और नई ग़ज़ल को पूरा करने की ख्वाहिश छोड़ एक पुरानी कविता की याद में डूब गए.. गड्ड - मड्ड..शाम को मेंढ़कों की आवाज भी सुनी ..दादुर धुनि...घन घमंड नभ गरजत घोरा.... तू बरस - बरस रसधार...आदि -इत्यादि ..बारिश का नशा अब तक तारी है ! और एक नई पोस्ट लिखने की तैयारी है !!
वह एक शहर था - नैनीताल जहाँ अपनी जिन्दगी के दस बरस बीते. दस वसंत न कहकर दस बरसातें कहा जाना ज्यादा सही होगा क्योंकि 'पावस रितु पर्वत प्रदेश' का जादू सचमुच जादू होता है.कुछ ऐसी ही जादुई जगह के जादुई एकांत ( जादुई उम्र भी ! )में जादू से भरी एक गरजती -बरसती रात में आज से कई बरस पहले एक कविता लिखी थी जो हर साल , हर बारिश में याद - याद आ जाती है - कल रात भी याद आई और आज पूरे दिन याद आती रही ( बकौल मखदूम और फ़ैज़ - आपकी याद आती रही रात भर !) अपनी तीन अन्य कविताओं के साथ यह कविता उसी समय 'दैनिक हिन्दुस्तान' के रविवासरीय में प्रकाशित हुई थी ...उन्ही जादुई दिनों में इस कविता का एक खूबसूरत पोस्टर अशोक पांडे ने तैयार किया था जिसे हल्द्वानी में हुई उनकी एकल प्रदर्शनी से एक जादुई लड़की माँगकर ले गई थी.. और एक कविता की 'कहानी' बन -सी गई थी....दिल को कई कहानियाँ याद - सी आके रह गईं ....वे दिन सचमुच जादू वाले थे , अब तो उसका नशा और खुमार भर है फिर भी महाकवि ग़ालिब हमेशा प्रेरणा देते रहते हैं कि 'रहने दो अभी सागरो-मीना मेरे आगे' ....
खैर , सभी मित्रों को बरसात मुबारक ! हैपी बारिश !!
आज की यह पोस्ट बारिश की बात और बारिश के बहाने याद आई एक पुरानी कविता की याद है जो वास्तव में स्मृतियों के तहखाने में उतरने की सीढी है..आइए अब कविता तक चलें और देखें इस नाचीज की यह पुरानी रचना नई बारिश के साथ - 'उस तरफ कमरे के बाहर'
उस तरफ कमरे के बाहर
रात भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर.
और मैं चुपचाप तन्हा बौखलाया
सुन रहा था बादलों का शोर
भीगी भीगी - सी हवा का एक टुकड़ा
जागती आँखों में लिखने लग गया था भोर
वह एक शहर था - नैनीताल जहाँ अपनी जिन्दगी के दस बरस बीते. दस वसंत न कहकर दस बरसातें कहा जाना ज्यादा सही होगा क्योंकि 'पावस रितु पर्वत प्रदेश' का जादू सचमुच जादू होता है.कुछ ऐसी ही जादुई जगह के जादुई एकांत ( जादुई उम्र भी ! )में जादू से भरी एक गरजती -बरसती रात में आज से कई बरस पहले एक कविता लिखी थी जो हर साल , हर बारिश में याद - याद आ जाती है - कल रात भी याद आई और आज पूरे दिन याद आती रही ( बकौल मखदूम और फ़ैज़ - आपकी याद आती रही रात भर !) अपनी तीन अन्य कविताओं के साथ यह कविता उसी समय 'दैनिक हिन्दुस्तान' के रविवासरीय में प्रकाशित हुई थी ...उन्ही जादुई दिनों में इस कविता का एक खूबसूरत पोस्टर अशोक पांडे ने तैयार किया था जिसे हल्द्वानी में हुई उनकी एकल प्रदर्शनी से एक जादुई लड़की माँगकर ले गई थी.. और एक कविता की 'कहानी' बन -सी गई थी....दिल को कई कहानियाँ याद - सी आके रह गईं ....वे दिन सचमुच जादू वाले थे , अब तो उसका नशा और खुमार भर है फिर भी महाकवि ग़ालिब हमेशा प्रेरणा देते रहते हैं कि 'रहने दो अभी सागरो-मीना मेरे आगे' ....
खैर , सभी मित्रों को बरसात मुबारक ! हैपी बारिश !!
आज की यह पोस्ट बारिश की बात और बारिश के बहाने याद आई एक पुरानी कविता की याद है जो वास्तव में स्मृतियों के तहखाने में उतरने की सीढी है..आइए अब कविता तक चलें और देखें इस नाचीज की यह पुरानी रचना नई बारिश के साथ - 'उस तरफ कमरे के बाहर'
उस तरफ कमरे के बाहर
रात भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर.
और मैं चुपचाप तन्हा बौखलाया
सुन रहा था बादलों का शोर
भीगी भीगी - सी हवा का एक टुकड़ा
जागती आँखों में लिखने लग गया था भोर
मुस्कुराकर नींद मेरी
सो रही थी उस तरफ कमरे के बाहर
रात भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर.
मोटी - मोटी पुस्तकों के भारी - भरकम शब्द
बेवजह मुझको चिढ़ाने लग गए थे कल
धीरे - धीरे बिछ रही थी खालीपन की एक परत
कसमसाने लग गया था प्यार का संबल
हाथों की अनमिट लकीरें
जाने किसको ढूँढ़ती थीं उस तरफ कमरे के बाहर
रात भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर।
( चित्र : रवीन्द्र व्यास / 'कबाड़खाना' से साभार)
12 टिप्पणियां:
रात भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर।
-अति सुन्दर रचना!! आभार इसे पढ़वाने का.
एक जादुई अनुभव से सराबोर पोस्ट
बढ़िया
आपको भी हैपी (जादुई) बारिश
बारिश आपको खूब मुबारक.हमारे यहाँ तो आपकी कविता किसी पुराने मौसम की याद ही दिला पाएगी.
आपके ब्लॉग का नाम होंट करता है. सच में कोई नदी कैसे अपवित्र हो सकती है?शायद ये अपनी सहोदराओं और सजातीय बहनों में सबसे गरीब घर में ब्याही गयी होगी.
"रात भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर।"
चौमासे का सुन्दर चित्रण,
बढ़िया पोस्ट।
बधाई!
कविता खूबसूरत... कविता की प्रस्तावना खूबसूरत..! आप जो कह रहे हैं हम आपके शब्दों के माध्यम से देख रहे हैं।
सब कुछ बेमिसाल .....कविता भी ....बारिश भी .ओर वो लम्हा भी.....यादो का नोस्टेल्जिया भी उम्र को कई साल पीछे धकेल कर कई बार आदमी को आने वाली उम्र के कुछ ओर साल दे जाता है .
इस पोस्ट ने मुझ पे जादू कर दिया है ..
सुंदर बारिश!
happy barish!
kitna achchha hota ki baarish mein main bhi aapke sath hota
to phir paharon ki baarish ka bheega ahsaas hota
सुन्दरतम रचना।
अन्तरतम तक भीग गया।
बधाई।
एक टिप्पणी भेजें